जिक्र करना यार जब भी रू-ब-रू करना
हूँ मयस्सर खोल के दिल गुफ्तगू करना
एक दर उसका बिना मांगे मिला सब कुछ
भूल बैठा हूँ मुरादो आरजू करना
है सराफत शान औ ईमान है जलवा
मौत इनकी हो नहीं क्या हाय हू करना
याद में जब हो खुदा तो पाक दिल होगा
गर नमाजे शौक हो तो क्या वजू करना
जो हवा में है बने खुशबू उड़े हर-सू
छोड़ दे अब "दीप" उसकी जुस्तजू करना
संदीप पटेल "दीप"
Comment
जिक्र करना यार जब भी रू-ब-रू करना
हूँ मयस्सर खोल के दिल गुफ्तगू करना
वाह! बहुत बढ़िया शायरी.बधाई स्वीकारें.
एक दर उसका बिना मांगे मिला सब कुछ
भूल बैठा हूँ मुरादो आरजू करना
वाह संदीप साहब आला दर्जे की शायरी और अशआर के लिए बधाई स्वीकारें
दुआ करता हूँ कि आपकी यह सुन्दर पंक्तियाँ सार्थकता का रूप ग्रहण करें
सादर
संदीप भाई बेहतरीन रचना , तहे दिल से बधाई स्वीकार कीजिये.....
सुन्दर गजल और महीने का सक्रीय सदस्य चुने जाने पर हार्दिक बधाई स्वीकारें भाई संदीप जी...
वाह वाह बहुत खूब ..........
महीने के सक्रिय सदस्य होने की बधाई
और इस ग़ज़ल के लिए अभिनन्दन !
है सराफत शान औ ईमान है जलवा
मौत इनकी हो नहीं क्या हाय हू करना
__वाह !
एक दर उसका बिना मांगे मिला सब कुछ bahut khub badhai sandeep ji ..........
wah wah
याद में जब हो खुदा तो पाक दिल होगा
गर नमाजे शौक हो तो क्या वजू करना,बेहतरीन रचना सदीप जी ,बधाई
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