अगर हम उन्हें अपना नहीं मानते
तो ये रिश्ते बनते कैसे
हर वक़्त हर पल , हम और तुम
इश्क की आग में जलते कैसे
क्यूँ दस्तक देती रोज़ हमारी चौखट पर
क्यूँ चौंकते हम रोज़ तुम्हरी आहट पर
दर्पण में हर बार तुमहरा चेहरा था
मन , जल में रह जल बिन सा था
जब नाम खुदा का लेते थे ,
पर नाम तेरा ही आता था
हर बार बुझी सी आँखों में ,
सपना जब कोई पलता था
हर बार तुम्हारी बातों से ,
पलकों से मोती गिरता था
रिश्ता कैसे और पनपता है
इस से बढकर क्या कोई होता है
मेरी हर सीप के मोती थे,
था तुमसे नहीं कोई ज्यादा
अपनों सा माना तुमको ,
हर बार लाँघ कर मर्यादा
Comment
Rekha ji ,
Su prabhat ,
Aap ka samarthan hmari prerna hai
hriday se abhinandan aapka
Bhramar sahab , aagar aapka man hamri rachna uthal puthal kar de , is se bada saubhagya kya hoga , dhanywaad , aapka ashirwaad rahega to likhne ke liye prerna milgei
हर बार बुझी सी आँखों में ,
सपना जब कोई पलता था
हर बार तुम्हारी बातों से ,
पलकों से मोती गिरता था
रिश्ता कैसे और पनपता है
आशीष जी ये समां बड़ा प्यारा बड़ा न्यारा लगता है .प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति झलकी ऐसा ही होता है
मेरी हर सीप के मोती थे,
था तुमसे नहीं कोई ज्यादा
अपनों सा माना तुमको ,
हर बार लाँघ कर मर्यादा,सुंदर अभिव्यक्ति आशीष जी ,आभार
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