सारे रिश्ते देह के, मन का केवल यार
यारी जब से हो गई , जीवन है गुलज़ार
मन ने मन से कर लिया आजीवन अनुबन्ध
तेरी मेरी मित्रता स्नेहसिक्त सम्बन्ध
मित्र सरीखा कौन है, इस दुनिया में मर्द
बाँट सके जो दर्द को बन कर के हमदर्द
मीत बनो तो यूँ बनो, जैसे शिव और राम
इक दूजे का रात दिन, जपे निरन्तर नाम
मेरी हर शुभकामना, फले तुझे ऐ यार
यश धन बल आरोग्य से, दमके घर संसार
चाहे दुःख का रुदन हो, चाहे सुख के गीत
रहना मेरे साथ में, हर दम मेरे मीत
-अलबेला खत्री
Comment
मित्रता के ऊपर शानदार दोहे आदरणीय खत्री जी। चतुर्थ दोहे का द्वितीय चरण-"जैसे शिव और राम"..मुझे लगता है कि इसमें 12 मात्राएँ हो गईं हैं।
आदरणीय राजेश कुमारी जी,
आपको पसन्द आये मेरे जज़्बात..........मेरे लिए ख़ुशी की है ये बात
धन्यवाद
सादर
मित्रता विषय पर बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं कोई साफ़ संवेदन शील ह्रदय वाला ही ये सब लिख सकता है बहुत सुन्दर भावनाएं हैं हार्दिक आभार एवं मित्रता दिवस की बधाई
आदरणीय प्राची सिंह जी
बहुत बहुत धन्यवाद
आपकी सराहना ने मेरे शब्दों को मजबूती दी है
सादर
ये अच्छा हुआ कि दोनों का लाभ हुआ ..........यही तो गुणधर्म है साहित्य का कि वह अपनी रौ में सबको बहाता है, सभी को बराबर हँसाता है और सभी को बराबर रुलाता है
आपको बधाई कि आप इस रौ में बहे.........वरना आपा धापी के इस दौर में लोग नहीं बहते लोगों की आँखों से हालात बहते हैं
सादर
इस से ज्यादा खून तो मेरा बढ़ा था इतनी सुन्दर दोहावली पढ़ कर अलबेला भाई जी.
धन्यवाद आदरणीय योगराज जी,
आपने सराहा यह दोहा........
मेरा खून बढ़ गया
सादर
//मीत बनो तो यूँ बनो, जैसे शिव और राम
इक दूजे का रात दिन, जपे निरन्तर नाम///
साधु साधु भाई अलबेला जी. वाह.
कृतज्ञ हूँ आद. सौरभ जी.......
सादर
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