सावन नभ पर छा गया, हरियाए सब खेत/
हरियाली छा ने लगी, ओझल बालू रेत//
ओझल बालू रेत, हरित होते सब जंगल/
कल कल नदी का शोर, बहे झरने भी निर्मल//
सुन कोयल की तान, नाचे शिखी भी उपवन/
‘अशोक’समझ न पाय, लाय मद कैसे सावन//
( कुछ त्रुटियां संज्ञान में आने पर सुधार के पश्चात पुनः पोस्ट किया है.)
Comment
आदरणीय बागडे साहब
सादर, सुन्दर प्रतिक्रया. आपका स्नहे पाकर प्रसन्नता हुई. धन्यवाद.
आदरणीय मिश्रा जी, आ. अरुण शर्मा जी आपने कुंडलियाँ पढ़ी,पसंद की. बहुत बहुत शुक्रिया.
बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ अशोक जी , क्या बात
‘अशोक’समझ न पाय, लाय मद कैसे सावन//...koun samajh paya
अशोक कुमार जी.सुन्दर कुण्डलियाँ
अशोक कुमार जी बहुत सुन्दर चित्रण किया है मनोरम है
बहुत बहुत बधाई
आदरणीय संदीप जी, रेखा जी, गौरव जी आपको कुंडलिया पसंद आयी जानकार प्रसन्नता हुई. आभार.
वाह रक्ताले सर...अति सुन्दर कुण्डलिया....बधाई.....
अशोक जी ,बहुत सुंदर कुंडलिया ,मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें
सुन्दर कुण्डलियाँ बधाई आद. अशोक जी!
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