यहाँ आजाद है हर सख्स थोपा जा रहा है क्यूँ
लडूं अधिकार की गर जंग रोका जा रहा है क्यूँ
हुआ है आज का हर आदमी अब तो सलामत-रौ
बदन पे आज कपडा तंग होता जा रहा है क्यूँ
नहीं बेफिक्र है लोगो जिसे हालात है मालुम
जवाँ फिर आज मूंदे आँख सोता जा रहा है क्यूँ
सलीका इश्क करने का कभी आया नहीं लेकिन
जिसे देखो दिलों में आग बोता जा रहा है क्यूँ
खुदी मसरूफ है फिर भी शिकायत वक़्त से करता
न जाने फूल नफ़रत के पिरोता जा रहा हैं क्यूँ
ग़मों में मुस्कुराने की अदा में जो हुआ माहिर
ख़ुशी के फिर बहाने ढूंढ रोता जा रहा है क्यूँ
यकीं करता नहीं है यार पर वादे हजारों ले
वजूदे इश्क खो पहचान खोता जा रहा है क्यूँ
खराबी से नहीं तौबा किया जब "दीप" उसने तो
बहा के चश्म-गंगा पाप धोता जा रहा है क्यूँ
संदीप पटेल "दीप"
Comment
ग़मों में मुस्कुराने की अदा में जो हुआ माहिर
ख़ुशी के फिर बहाने ढूंढ रोता जा रहा है क्यूँ ......वाह बहुत खूब
मुबारकबाद संदीप जी .......
ग़मों में मुस्कुराने की अदा में जो हुआ माहिर
ख़ुशी के फिर बहाने ढूंढ रोता जा रहा है क्यूँ
वाह! बहुत ही बढ़िया. सुन्दर गजल.
सलीका इश्क करने का कभी आया नहीं लेकिन
जिसे देखो दिलों में आग बोता जा रहा है क्यूँ
खुदी मसरूफ है फिर भी शिकायत वक़्त से करता
न जाने फूल नफ़रत के पिरोता जा रहा हैं क्यूँ
इन लाईनों ने तो बहुत ही उद्वेलित किया है
ऐसे पूरी गज़ल लाजवाब है
बधाई हो भाई संदीप
ग़मों में मुस्कुराने की अदा में जो हुआ माहिर
ख़ुशी के फिर बहाने ढूंढ रोता जा रहा है क्यूँ
खराबी से नहीं तौबा किया जब "दीप" उसने तो
बहा के चश्म-गंगा पाप धोता जा रहा है क्यूँ
प्रिय संदीप जी बहुत सुन्दर भाव ..सच में जब हम आत्मावलोकन न करें कष्ट तो मिलेगा ही फिर क्यों छटपटाना ...
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