हरी-हरी धरती भई.....
सावन के दिन आ गये ,नाचे मन का मोर..
बिजुरी चमके बारहा ,खूब मचाती शोर.
खूब मचाती शोर,धरा पर खुशियाँ छाई.
त्यौहारों के मेले,ऊपर से महंगाई.
कहता है अविनाश,युसुफ या रामखिलावन.
दोनों के हैं अधर,गा रहे मिलकर सावन.
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Comment
कुण्डलिया के लिये बधाई, अविनाश भाई.
सावन की रिमझिम फुहारों जैसी सुन्दर मनभावन कुंडलियाँ हार्दिक बधाई अविनाश जी
हरी-हरी धरती भई....आपके इस मनमोहक प्राकृतिक चित्रण ने मन को मोह लिया
सुन्दर दृश्य आँखों के सामने आ रहे है
धरा पर खुशियाँ छाई....मन नाच उठा
बहुत सुन्दर है कुण्डलियाँ
आदरणीय अविनाश जी सुन्दर सन्देश काश ऐसे ही प्रकति हमें गले मिलाये खुशियाँ बरसाए मन भावन दृश्य भरी कुण्डलियाँ
//बदरा बरसे शान से, बिजुरी चमके जोर.
हरी - हरी धरती भई,जित देखूं उत ओर......वाह ....
पर कुछ बादल अब उधर भी जाने चाहिए जहां लोग वर्षा के लिए तरस रहे हैं
अविनाश जी दूसरे छंद मे दोहे वाले भाग मे कुछ गडबड हो गयी
कहता है अविनाश,युसुफ या रामखिलावन.
दोनों के हैं अधर,गा रहे मिलकर सावन.....बहुत बढ़िया भाव ... सच है प्र...
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