किसके मन में नहीं वेदना
विकल प्राण की धरणी है
कौन प्रतापी धूसर पग से
पार हुआ वैतरणी है ?
किसके मन में ......
कौन विधु परिपूर्ण कला से
गगन खिला अभिराम लला से
कल्पवृक्ष यहां किसे मिला है
कौन अमर निर्झरणी है ?
किसके मन में.....
किसके पगतल भंवर नहीं हैं
गुहा-गर्त कुछ गह्वर नहीं हैं
दशो दिशा किसकी पूरब है ?
कौन वृत्त विकर्णी है ?
Comment
कौन प्रतापी धूसर पग से
पार हुआ वैतरणी है ?.. .
अभिव्यक्ति आपके प्रति गहन आशाएँ जगाती है. सुझाव और सलाहों के प्रति संवेदनशीलता अत्यंत उपयोगी होगी, राजेशजी. सहयोग बना रहे.
हार्दिक धन्यवाद.
गीत लिखने वालों के साथ अक्सर यह होता है राजेश जी गीत अमूमन गुनगुना कर ही लिखे जाते हैं बस वही कभी कभी दीर्घ -लघु की गडबड हो जाती है ...मेरे साथ स्वयं यही होता है दूसरों के इंगित करने पर ध्यान जाता है ......मेरी बात को सहजता से लेने के लिए आभार
आप सब का हार्दिक आभार । सीमा जी आपने बिल्कुल सही कहा । मैंने कोशिश की थी इसे बदलने की पर किसी कारणवश नहीं बदल पाया, पुन: धन्यवाद अपना स्नेह बनाए रखें
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण गीत राजेश जी बधाई
किसके मन में नहीं वेदना
विकल प्राण की धरणी है
कौन प्रतापी धूसर पग से
पार हुआ वैतरणी है ?.......वाह बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
पर दो स्थान इंगित करूंगी जहां मात्राओं के असंतुलन के कारण लघु वर्ण को दीर्घ उच्चारित करना पड़ रहा है
१)कौन विधु परिपूर्ण कला से/कौन विधू परिपूर्ण कला से
२)कौन वृत्त विकर्णी है ?/कौन वृत्त वीकर्णी है ?
कल्पवृक्ष यहां किसे मिला है....पन्क्ति में मात्राएँ ज्यादा होने के कारण प्रवाह में बाधा आ रही है
बहुत सुन्दर | यह तो सार्वभौम सत्य है आपने सही कहा है कौन विधु परिपूर्ण कला से
//कौन विधु परिपूर्ण कला से
गगन खिला अभिराम लला से
कल्पवृक्ष यहां किसे मिला है
कौन अमर निर्झरणी है ?//
वाह वाह बहुत सुन्दर भाव एवं सुन्दर शब्द संयोजन, बधाई स्वीकार करें राकेश कुमार झा जी.
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