तुम्हारे क़दमों के नीचे
सूखे हुए पत्तों की
चरमराहट ने भेज दिया
संदेसा,
छुप गई
मृगनयनी कोमल
लताओं की ओट में
अपलक निहारने लगी
तुम्हारा ओजपूर्ण लावण्य
काँधे पर तरकश
हाथ में तीर लेकर
ढूंढ रहे थे तुम अपना
शिकार
दरख़्त से
लिपटी हुई लताओं
के खिसकने की
आवाज के साथ
तुमने कुछ खिलखिलाहट
महसूस की
तुमने झाँक कर देखा
ढलते हुए सूरज की
सुर्ख लाल किरणों के
तीर उसकी आँखों को बींध गए
मानो दो दीये प्रज्ज्वलित हो उठे वहां
उस मृगनयनी आँखों में
और तुम अपलक देखते ही रह गए
समझ नहीं पाए तुम
कि शिकार तुम्हारा
दिल हो चुका था
पल में तुम्हारा दंभ
चकनाचूर हो गया
क्षणभर में एक गर्वित शिकारी
कब भिक्षुक बन बैठा
पता ही ना चला
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Comment
लिपटी हुई लताओं
के खिसकने की
आवाज के साथ
तुमने कुछ खिलखिलाहट
महसूस की
तुमने झाँक कर देखा
ढलते हुए सूरज की
सुर्ख लाल किरणों के
तीर उसकी आँखों को बींध गए
मानो दो दीये प्रज्ज्वलित हो उठे वहां
उस मृगनयनी आँखों में
आदरणीया राजेश कुमारी जी ...बहुत ही प्यारी उड़ान कल्पना में कहाँ से कहाँ पहुँच गयीं आप सुन्दर प्रणय भाव भरी रचना .बधाई ...
हार्दिक आभार राज नवाद्वी जी आपको रचना पसंद आई
तुम्हारे क़दमों के नीचे
सूखे हुए पत्तों की
चरमराहट ने भेज दिया
संदेसा ,छुप गई
मृगनयनी कोमल
लताओं की ओट में
अपलक निहारने लगी
तुम्हारा ओजपूर्ण लावण्य
- वाह, बहुत सुन्दर वर्णन, ओजपूर्ण किन्तु कोमल भी, और एंटी-क्लाइमेक्स तो बहुत ही अच्छा है, सैयाद खुद शिकार हो गया.. बधाई हो राजेश जी!
कई दिन बाद आना हुआ यहाँ कुछ व्यस्त चल रही हूँ मेरी रचना आपको पसंद आई हार्दिक आभार प्राची जी बहुत पहले कि लिखी हुई है आज सोचा इसे ही पोस्ट कर देती हूँ
उस मृग नयनी आँखों में
और तुम अपलक देखते ही रह गए
समझ नहीं पाए तुम
कि शिकार तुम्हारा
दिल हो चुका था
पल में तुम्हारा दंभ
चकना चूर हो गया
क्षणभर में एक गर्वित शिकारी
कब भिक्षुक बन बैठा
पता ही ना चला..... वाह वाह ..बहुत खूबसूरत बिम्बों से सजी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी
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