For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम्हारे क़दमों के नीचे
सूखे हुए पत्तों की
चरमराहट ने भेज दिया
संदेसा,
छुप गई
मृगनयनी कोमल
लताओं की ओट में
अपलक निहारने लगी
तुम्हारा ओजपूर्ण लावण्य
काँधे पर तरकश
हाथ में तीर लेकर
ढूंढ रहे थे तुम अपना
शिकार
दरख़्त से
लिपटी हुई लताओं
के खिसकने की
आवाज के साथ
तुमने कुछ खिलखिलाहट
महसूस की
तुमने झाँक कर देखा
ढलते हुए सूरज की
सुर्ख लाल किरणों के
तीर उसकी आँखों को बींध गए
मानो दो दीये प्रज्ज्वलित हो उठे वहां
उस मृगनयनी आँखों में
और तुम अपलक देखते ही रह गए
समझ नहीं पाए तुम
कि शिकार तुम्हारा
दिल हो चुका था
पल में तुम्हारा दंभ
चकनाचूर हो गया
क्षणभर में एक गर्वित शिकारी
कब भिक्षुक बन बैठा
पता ही ना चला

*************

Views: 666

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 16, 2012 at 6:32pm

लिपटी हुई लताओं 
के खिसकने की 
आवाज के साथ 
तुमने कुछ खिलखिलाहट 
महसूस की 
तुमने झाँक कर देखा 
ढलते हुए सूरज की
सुर्ख लाल किरणों के
तीर उसकी आँखों को बींध गए
मानो दो दीये प्रज्ज्वलित हो उठे वहां 
उस मृगनयनी आँखों में 

आदरणीया राजेश कुमारी जी  ...बहुत ही प्यारी उड़ान कल्पना में कहाँ से कहाँ पहुँच गयीं आप सुन्दर प्रणय भाव भरी रचना .बधाई ...

भ्रमर ५ 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 16, 2012 at 3:33pm

हार्दिक आभार राज नवाद्वी जी आपको रचना पसंद आई 

Comment by राज़ नवादवी on August 16, 2012 at 3:25pm

तुम्हारे क़दमों के नीचे 

सूखे हुए पत्तों की 

चरमराहट ने भेज दिया 

संदेसा ,छुप गई 

मृगनयनी कोमल 

लताओं की ओट में 

अपलक निहारने लगी 

तुम्हारा ओजपूर्ण लावण्य

- वाह, बहुत सुन्दर वर्णन, ओजपूर्ण किन्तु कोमल भी, और एंटी-क्लाइमेक्स तो बहुत ही अच्छा है, सैयाद खुद शिकार हो गया.. बधाई हो राजेश जी! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 16, 2012 at 3:17pm

कई दिन बाद आना हुआ यहाँ कुछ व्यस्त चल रही हूँ मेरी रचना आपको पसंद आई हार्दिक आभार प्राची जी बहुत पहले कि लिखी हुई है आज सोचा इसे ही पोस्ट कर देती हूँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 16, 2012 at 3:04pm
बहुत कोमल खूबसूरत शब्दों  के साथ कोमल भावों को संप्रेषित किया है, मन में सम्पूर्ण चित्र उभर गया, जैसे विडियो ही चल गया...
दो दिए प्रज्ज्वलित हो उठे वहां 

उस मृग  नयनी  आँखों में  

और तुम अपलक  देखते ही रह गए 

समझ नहीं पाए   तुम  

 कि  शिकार तुम्हारा 

दिल हो चुका  था 

पल में तुम्हारा दंभ

चकना चूर  हो गया  

क्षणभर में एक गर्वित शिकारी

कब भिक्षुक बन बैठा

पता ही ना चला.....      वाह वाह ..बहुत खूबसूरत बिम्बों से सजी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"ग़ज़ल आ गया है वक्त अब सबको बदलना चाहिये। मेहनत से जिन्दगी में रंग भरना चाहिये। -मेहनतकश की नहीं…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"अभी तो तात्कालिक सरल हल यही है कि इसी ग़ज़ल के किसी भी अन्य शेर की द्वितीय पंक्ति को गिरह के शेर…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. तिलकराज सर, मैंने ग़ज़ल की बारीकियां इसी मंच से और आप की कक्षा से ही सीखीं हैं। बहुत विनम्रता के…"
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"परम आदरणीय सौरभ पांडे जी व गिरिराज भंडारी जी आप लोगों का मार्गदर्शन मिलता रहे इसी आशा के…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। 'मिलना' को लेकर मेरे मन में भी प्रश्न था, आपके…"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"2122 2122 2122 212 दोस्तों के वास्ते घर से निकलना चाहिए सिलसिला यूँ ही मुलाक़ातों का चलना चाहिए…"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार  बहुत बहुत आभार आपका ,ये प्रश्न मेरे मन में भी थे  सादर "
11 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"इस बार के तरही मिसरे को लेकर एम प्रश्न यह आया कि ग़ज़ल के मत्ले को देखें तो क़ाफ़िया…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति औल स्ने के लिए आभार।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। 6 शेर के लिए आपका सुझाव अच्छा…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. प्राची बहन, सादर अभिवादन।गजल आपको अच्छी लगी, लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"2122 2122 2122 212 **** रात से मिलने को  दिन  तो यार ढलना चाहिए खुशनुमा हो चाँद को फिर से…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service