For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहीं धूप में जले लोग
कहीं बर्फ में गले लोग

दर्दो-ग़म की बस्ती में
तन्हाई के काफ़िले लोग

बारूदों की तल्ख़ धूप में
खूं-पसीने से गिले लोग

बिन जुर्म जो काटे सज़ा
वो सलीब की कीलें लोग

कुछ पड़े हैं लाशों जैसे
कुछ हैं गिद्द-चीलें लोग

सागर थे जो सूख गए
बचे रेत के टीले लोग

खूं भी नहीं खौलता अब
नहीं होते लाल-पीले लोग

पाप अधम के बाजों पर
नाच रहे रंगीले लोग

दुनिया की फुलवारी पे
उग आये कंटीले लोग

बिन पैंदे के लोटे सब
नहीं रहे हठीले लोग

कंचन वर्ण सी काया में
कलुष भरे पतीले लोग

नफस नफ़स ज़हर भरा
दिखते नही नीले लोग
मेरी पुस्तक "एक कोशिश रोशनी की ओर "से

Views: 698

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on January 12, 2011 at 4:33pm
बहुत खूब आशा दी !!! आपकी गज़ल अत्यंत प्रभावी और असरकारक है | समग्रता में कहूँ तो आपका साहित्य भाषा और भावपरक संवेदना के स्तर पर ह्रदय को छूता है | आप खूब लिखें लोकप्रिय हों यही कामना है |
Comment by Chhavi Chaurasia on May 16, 2010 at 1:46pm
कहीं धूप में जले लोग
कहीं बर्फ में गले लोग
दुनिया की फुलवारी पे
उग आये कंटीले लोग....
यह ऐसी रचना है जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम है.
Comment by Anil Tiwari on May 5, 2010 at 3:55pm
kabhi log sochate hi ki hum se bedh ke koi nahi lekin aisa nahi hota
Comment by asha pandey ojha on May 5, 2010 at 9:56am
aap sabhee mahanubhwon ka housla afzai ke liye tahe dil se shukriya ..itna sneh paakr man bheega bheega sa ho utha hai ..ummeed kartee hun aapka ye sneh yoon hee milta rhegaa..aabhar..
Comment by Anil Tiwari on May 5, 2010 at 9:32am
ye khuda to itna majboor na kar vah -vah karne ko kyoki hame syari ko vah- vah karna hi hai
Comment by aleem azmi on May 3, 2010 at 1:07pm
bahut sunder rachna aapne likhi hai ...jitni tareef ki jaaye mam utni kam ... likhte rahiye
Comment by SUMAN KUMAR SINGH on May 3, 2010 at 10:37am
kya bat hai asha jee
Comment by विवेक मिश्र on May 2, 2010 at 6:13pm
आशा जी.. बहुत ही अच्छी ग़ज़ल लगी. इस तरह की नज्मों का आगे भी इंतज़ार रहेगा..
Comment by rakesh naraian on May 2, 2010 at 10:37am
सागर थे जो सूख गए
बचे रेत के टीले लोग
wah
wakai paramparayen samskriti samskaron ke pawan jal ko tyag ker hum veerane mein es banjar bhumi mein nistej pade hue hai un teelon ki tarah ..jinme hawa ke saath udker kahi aur jaker naya sthan talashne ki ichaa to baki hai magar humme wah bhi ab nahi ...asha ..aapki choti bahar ki ye gazal bahut umdaa hai ..

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 1, 2010 at 10:45am
आशा जी

छोटी बहर में ग़ज़ल कहना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है ! इतने कम अल्फाज़ में इतनी गहरी बात कह पाना हर किसी के बूते कि बात नहीं है ! आम तौर पर तकरीबन हर ग़ज़ल-गो गिनती पूरी करने के लिए एक आध शेयर ग़ज़ल में डाल दिया करता है, उस्ताद लोग ऐसे शेयरों को "भर्ती का शेयर" कहा करते हैं ! मगर आपकी इस पूरी ग़ज़ल में कोई भी "भर्ती का शेयर" नहीं मौजूद नहीं है, जिसके लिए मैं आपको मुबारकबाद देता हूँ ! सभी शेयर अपनी अपनी जगह मौजू हैं और एक से बढ़ कर एक हैं मगर आपके ये मुन्दर्जा ज़ैल (निम्नलिखित) आ'शर सीधे सीधे दिल-ओ-दिमाग पर चोट करते हैं, मेरी नज़र में यह हासिल-ए-ग़ज़ल शेयर हैं:

सागर थे जो सूख गए
बचे रेत के टीले लोग

बिन पैंदे के लोटे सब
नहीं रहे हठीले लोग

लेकिन आशा जी, इस ग़ज़ल का मतला और उस के बाद के दो शेयरों पर अगर अप ग़ौर फरमायें तो इन तीन शेयरों का काफिया-रदीफ़ बाकी के शेयरों से अलग है ! आपको मालूम ही होगा कि काफिया-रदीफ़ कि बंदिश ही ग़ज़ल कि आन बान और शान कहलाती है, बराए मेहरबानी इन शेयरों पर दोबारा से गौर फरमायें !

खलूस-ओ-एहतराम के साथ
योगराज प्रभाकर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
41 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
16 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
20 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
yesterday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
yesterday
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service