यहाँ वृक्ष हुआ करते थे
जो कभी
लहलहाते थे
चरमराते थे
उनके पत्तों का
आपस का घर्षण
मन को छू लेता था
उनकी डालों की कर्कश
कभी आंधी में
डराती थी मन को |
बारिश के मौसम की
खुशबू और ताज़गी
कुछ और बढ़ा देती थी
जीवन को ||
उन वृक्षों की पांत
अब नहीं मिलती
देखने तक को भी
लेकिन , हाँ !
वृक्ष अब भी हैं
वही डिजाईन
वही उंचाई
शायद उंचाई तो कुछ
और भी ज्यादा हो
मगर इनसे हवा
नहीं मिलती
नहीं मिलती
इनसे खुशबू
न कोई आनंद
लेकिन
निश्चित ही
ये वृक्ष
पैसे उगलते हैं
जिसके लिए
हर कोई
पागल बना फिरता है
मगर इतने पर भी
इन वृक्षों से मोह
नहीं हो पाता
कैसे हो ! आखिर
हमने इन्हें सीमेंट से
जो सींचा है |
भावनाएं कैसे समझेंगे
ये कंक्रीट के वृक्ष
हमारी भावनाओं का
घड़ा भी तो
इनके लिए रीता है ||
Comment
बहुत बहुत आभार श्री अलबेला जी , आपका आशीर्वाद मिला
आदरणीय सीमा अग्रवाल जी , सादर नमस्कार ! आपके दिए गए सुझाव का बहुत स्वागत करता हूँ ! अवश्य ही इस ओर ध्यान दूंगा , किन्तु मुझे यहाँ अपने शब्द बदलना नहीं आता , मैं नहीं जानता की यहाँ लिखे शब्द को कैसे ठीक किया जा सकता है ? किन्तु मैं अपनी डायरी में अवश्य संशोधन करूँगा ! बहुत बहुत आभार
योगी जी आप कर्कश के साथ ध्वनि शब्द लिख सकते हैं यथा कर्कश ध्वनि
घर्षण शब्द को हटा कर मात्र पत्तों की आवाज़ या पत्तों के स्वर प्रयुक्त कर सकते हैं ..
यह सुझाव मात्रा है .......
बहुत बहुत आभार , आदरणीय सीमा अग्रवाल जी ! आपका सहयोग , समर्थन और मार्गदर्शन मिला ! सीमा जी , असल में मुझे बहुत ज्यादा भाषा ज्ञान नहीं है इसलिए सिर्फ मन की आवाज़ को शब्दों में पिरो लेता हूँ ! आप मार्ग दर्शन करते रहेंगी तो शायद कुछ सुधार कर सकूं ! बहुत बहुत आभार
बहुत बहुत आभार , आदरणीय श्री रक्ताले जी !
योगी जी
सादर,
वृक्ष अब भी हैं
वही डिजाईन
वही उंचाई
शायद उंचाई तो कुछ
और भी ज्यादा हो
मगर इनसे हवा
नहीं मिलती
नहीं मिलती
इनसे खुशबू
बदलाव का समय चल पड़ा है. देखिये आगे आगे होता है क्या.
सादर
अति भौतिकतावाद ,बढ़ती जनसँख्या ,पैसा कमाने की होड ने आज इंसान को ही artificial बना कर रख दिया है तो बनावटी चीज़ों से संवेदनाओं की क्या उम्मीद करना ...बहुत अच्छी प्रस्तुति सारस्वत जी
उनकी डालों की कर्कश
कभी आंधी में
डराती थी मन को |........पर सौरभ जी के प्रश्न को आपने नज़रंदाज़ कर दिया दरअसल कर्कश विशेषण है तो कोई संज्ञा तो जोड़िए उसके साथ
उनके पत्तों का
आपस का घर्षण ....घर्षण से कोई मनोहारी आवाज़ कैसे आयेगी थोड़े से परिवर्तन से आपकी रचना और निखर जायेगी
सोनम सैनी जी , बहुत बहुत आभार आपका ! मेरे शब्द आपके पास तक पहुंचे ! सहयोग और समर्थन बनाये रखियेगा ! धन्यवाद
आदरणीय श्री राजेश कुमार झा जी , सादर नमस्कार ! मेरे शब्दों को आपका आशीर्वाद मिला , अच्छा लगा ! सहयोग की कामना आगे भी करता हूँ ! धन्यवाद एवं आभार
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