इस तरह दूर वो आजकल हो गई।
जैसे इस शहर की बिजली गुल हो गई।
देह तेरी किसी बेल जैसी लगे,
आई बरसात धुलकर नवल हो गई।
इस तरह रास्ते और लम्बे हुये,
जैसे के मेरी लम्बी ग़ज़ल हो गई।
बेवफा क्या बताऊँ तेरी बाट में,
प्यार की बर्फ पिघली,और जल हो गई।
आम की भोर पर भंवरे जो आ गये
मुस्कुराहट मधुरता का फल हो गई।
एक बरसात आई तुम्हारी तरह,
और जोहड में खिल कर कमल हो गई।।
सूबे सिंह सुजान
Comment
Saurabh Pandey............ji namskar aapka dnyawad..........
सादर धन्यवाद, भाईजी.
सौरभ जी, मैं कह चुका हूँ क्षमा की कोई आवश्यकता नहीं है।। नाम का क्या है कुछ भी रख दो।।अब सबके घरों में दो-दो या इससे भी अधिक नामों का प्रचलन हो गया है। माँ बाप खुद बच्चों के नाम बिगाडते हैं ।
नामों के प्रति मैं अत्यंत संवेदनशील रहता हूँ, भाई सूबे सिंह सुजानजी. फिरभी भूल हुई. मैं हृदय की गहराइयों से क्षमाप्रार्थी हूँ.
सादर
Saurabh Pandey....जी, मेरे नाम में चौहान नहीं, सुजान है।।।।
मैं हैरान होता हूँ। याहू ग्रुप में भी ऐसा ही होता है कंई बार कईं कवि मुझे चौहान ही लिख जाते हैं,,,,,,,,,,खैर कोी बुरा नही है चौहान भी, नाम तो नाम है।।।कुछ भी रख लो...........आखिर जाना ही तो है दुनिया से सब नामों को..............
आपने कहा, कि मतले की कहन ने चौंकाया है............ये तो आपने मुझे ढंडस दिया है।। धन्यवाद।
भाई सूबे सिंह चौहान जी, अपनी ग़ज़ल पर मेरी हार्दिक बधाइयाँ स्वीकारें. हिन्दी शब्दों का अन्यतम प्रयोग हुआ है. यह अत्यंत संतुष्टिदायक है.
मतले की कहन ने जिस तरह से चौंकाया है वह आपकी ग़ज़लों के प्रति उम्मीद बढ़ाती है. हार्दिक बधाई.. .
seema agrawa.........आपने मेरा उत्साह दोगुना कर दिया है। आपके द्वारा लिखित शब्दों ने मुझे उत्साहित किय़ा है। मुझे अब इससे अच्छी ग़ज़ल कहनी ही पडेगी। आपके द्वारा जो तारीफ की गई है वह अमूल्य है मेरे लिये।
बेहद शुक्रिया
वाह बिलकुल नए अंदाज़ की बातें ...हिंदी के शब्दों का बहुत सुंदरता के साथ प्रयोग हुआ है आपकी गज़ल में
देह तेरी किसी बेल जैसी लगे,
आई बरसात धुलकर नवल हो गई।......क्या बात है !!!!!
एक बरसात आई तुम्हारी तरह,
और जोहड में खिल कर कमल हो गई। वाह !!!!!
हार्दिक बधाई सुजान जी
वीनस केसरी.............जी, आपकी नज़र को ग़ज़ल अच्छी लगी मन प्रसन्न हुआ की कंही न कंही मैं लिखने लायक तो हुआ। वरना काफी दिनों से ग़ज़ल लेखन करने के बाद भी कईं बार उस्तादों से डांट खानी पडती है।
Rajesh Kumar Jha.... झा जी आपने मीठी ग़ज़ल कहा तो मुझे आपकी मिठास का अनुभव होने लगा है।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online