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जब भी गुमसुम तन्‍हा तट पर

बरबस तुम आ जाओगे

वहीं लहर के श्रृंग तोड़ते

मुझको तुम पा जाओगे

 

बिछुड़े पल के दीप तले

जब अश्रु अर्घ्‍य चढ़ाओगे

वहीं शिखा की छाया छूते

मुझको तुम पा जाओगे

 

छोड़-छोड़ सौन्‍दर्य प्रसाधन

जब कुंतल तुम बिखराओगे

वहीं किसी दर्पण में हंसते

मुझको तुम पा जाओगे

 

ना कहना ना मुझको छलिया

फिर किसको प्रीत सिखाओगे

पायल,कंगन,बिंदी,अंजन में

मुझको तुम पा जाओगे

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Comment

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Comment by राजेश 'मृदु' on August 25, 2012 at 12:12pm

आप सबकी उपस्थिति एवं प्रोत्‍साहन हेतु हार्दिक आभार

Comment by Rekha Joshi on August 24, 2012 at 5:51pm

अति सुंदर अभिव्यक्ति राजेश जी 

Comment by Naval Kishor Soni on August 24, 2012 at 5:21pm

वाह! बहुत सुन्दर प्रेम अभिव्यक्ति..---------badhai.

Comment by Albela Khatri on August 24, 2012 at 2:58pm

आदरणीय राजेश झा  जी...........मंत्रमुग्ध कर दिया  आपने.....
कमाल है .....
वाह

बिछुड़े पल के दीप तले

जब अश्रु अर्घ्‍य चढ़ाओगे

वहीं शिखा की छाया छूते

मुझको तुम पा जाओगे

 

छोड़-छोड़ सौन्‍दर्य प्रसाधन

जब कुंतल तुम बिखराओगे

वहीं किसी दर्पण में हंसते

मुझको तुम पा जाओगे

___इस सुन्दर रचना के लिए अभिनन्दन !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 24, 2012 at 1:45pm

प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति | दरअसल प्रेम शब्द से प्रेम करने वाला ईश प्रेमी होता है 

भगवन कृष्ण ने प्रेम को जो आदर्श प्रस्तुत किया है,वह अद्वित्तीय है | सखियों के प्रति,
राधा के प्रति, सखा सुदामा के प्रति, चोपाया गाय हो, मेघ में नाचता मयूर, या कलरव 
करता कोई पक्षी हो | ईसामसीह ने कहा है "जो कोई मुझसे प्रेम करेगा,मै उसके अन्दर 
हूँ | हमाए राजस्थान की मीरा बाई का प्रेम जग जाहिर है जो कृष्ण प्र्रेम में दीवानी हो 
गयी थी | इस बारे में जितना कहा जावे कम है : हार्दिक बधाई बंधुवर झा भाई |
Comment by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 9:43pm

वाह खूब................पंक्तियाँ...

ना कहना ना मुझको छलिया

फिर किसको प्रीत सिखाओगे

पायल,कंगन,बिंदी,अंजन में

मुझको तुम पा जाओगे


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2012 at 7:48pm

राजेश कुमार झा जी बहुत सुन्दर प्रेम में पगी रचना हेतु बहुत बहुत बधाई 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 23, 2012 at 5:59pm
आदरणीय राजेश कुमार जी!
निश्छल भावभूमि पर रचित प्रेमगीत अपने शालीन सौष्ठव की पराकष्ठा को छू रहा है,जो निरस अप्रेमी के अन्तस को भी अभिभूत कर सकता है।लेखनी की सिद्धहस्तता अचम्भित करती है।अनुपम प्रेमगीत की रचना पर हार्दिक बधाई।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 23, 2012 at 5:19pm
वाह! बहुत सुन्दर प्रेम अभिव्यक्ति..
सब कुछ भाव ही तो हैं... मन जैसे भावों को उत्पन्न करता है, वही साकार रूप लेते प्रतीत होने लगते हैं, 
सुन्दर कल्पना, सुन्दर अभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई

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