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कुम्हलाते मस्तिष्क (कुछ हाइकू )

 

१.
धूमिल ओज .
मासूम बचपन .
बस्तों का बोझ .
२.
कड़ी तपस्या .
विद्रूप बाल्य शिक्षा .
बड़ी समस्या .
३.
जीवन बूँद .
उन्मुक्त बचपन .
घिरती धुंध .
४.
रटंत शिक्षा .
कुम्हलाते मस्तिष्क .
व्यर्थ की दीक्षा .
५.
ढूँढे किरण .
बाल्यांकुर खिलते .
नेह सिंचन .
६.
वीडिओ गेम्स .
नशे में बचपन .
फँसते ब्रेन्स .

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 3, 2013 at 12:37pm

आदरणीय अरुण निगम जी हाईकू का हाईकू द्वारा अनुमोदन करने हेतु हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on September 15, 2012 at 12:26am

किसका दोष

हरएक खामोश

कैसा संतोष |

नन्हीं-सी सीढ़ी

मंजिल गगन में

उन्नत पीढ़ी |

बचपन का यथार्थ चित्रण,बधाई.........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 2, 2012 at 2:35pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आपने इन हाइकू को सराह कर प्रोत्साहित किया, इस हेतु आपका हार्दिक आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2012 at 10:46pm

आपने अपने हाइकू को एक विधा जनित आयाम दिया है. वाह !

इन हाइकू के लिये विशेष बधाई-

कड़ी तपस्या .
विद्रूप बाल्य शिक्षा .
बड़ी समस्या .
 
वीडिओ गेम्स .
नशे में बचपन .
फँसते ब्रेन्स .
 
बहुत खूब डॉ. प्राची. 
Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 1, 2012 at 12:30pm

जी अवश्य, हम इस पर शीघ्र लिखने का प्रयास करेंगे......धन्यवाद!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2012 at 9:55am

आपके विनम्र विचारों का हार्दिक स्वागत है आ. पियूष जी, यदि आप विश्लेषण कर पाए तो आप द्वारा किये गए गहन विश्लेषण का स्वागत है, ज़रूर प्रस्तुत करें, इस से विषय वस्तु ज्ञान में अवश्य ही और वृद्धि होगी.

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 1, 2012 at 9:51am

बेहतर...... किन्तु सम्पूर्ण विनम्रता से कहेंगे कि विश्लेषण थोड़ा और हो सकता था!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2012 at 9:47am

बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडिवाला जी, आपको ये हाइकू पसंद आये, तो इन्हें लिखा जाना सार्थक लग रहा है. सादर .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2012 at 9:45am

प्रिय विन्ध्येश्वरी जी,

हार्दिक आभार, इतने गौर से इन हाइकू  को पढने , इसमें निहित भावों को मान देने व अपनी अमूल्य राय के लिए...
इस विषय पर बहुत सुन्दर छंद बद्ध भी लिखा जाए तो निश्चय  ही भाव बहुत उभर कर सामने आयेंगे और लयबद्धता का आकर्षण भी मन मोह लेगा...
कलम को ऐसा प्रयास भी ज़रूर करना चाहिए, इस प्रकार से लेखनी को प्रोत्साहित करने हेतु बहुत बहुत आभार.
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2012 at 9:36am

 कुम्हलाते मस्तिष्क(हाइकु) के माध्यम से बच्चों को दी जा रही बोझिल सिक्षा पर 

बहुत सुन्दर तरीके से व्यंग किया है | हार्दिक बधाई आदरणीया डॉ.प्राची सिंह जी  

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