For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सब कुछ जग में है, नश्वर

एक ही सबका हैं, ईश्वर

हिन्दू ,मुश्लिम, सिख, ईसाई

अनेक धर्मो में बट गया जग

फिर भी मन में है, भटकन l

सच जीवन का दर्पण है                    

वेद पुराण में वर्णन है

समाहित कर जग कल्याण को

गीता जग में उपस्थित है

मन में फिर क्यूँ भटकन है l

कभी खिलखिला हँसता जब

ओरो को दुःख देकर

कभी असहाय बन

खुद रोता तड़प तड़प कर

कृत्य अपने स्मरण कर  l

रात्रि गुजारता करवटे बदल

कभी सोता मस्त मलंग  

जीवन भर रहा इस उलझन

क्या कमाया उम्र भर

जब सब कुछ

जग में है नश्वर l

क्या करूँ मैं, क्या कहूँ मैं

क्या सोचे ये चंचल मन

आत्मचिंतन को छोड़ के मैं

लगा रहा अर्जित करने

मान सम्मान और केवल धन

समय गवाया जीवन भर  l

जीवन का दस्तूर भुला

सच से अपना पीछा छुड़ा

उस ईश्वर का नाम भुला

रिस्तो का फिर जाल बुन        

भुला बैठा मैं सुख की धुन

फिर भी मन में है, भटकन

Views: 498

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PHOOL SINGH on September 4, 2012 at 2:25pm

राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम...

आपका बहुत बहुत सुक्रिया ......

फूल सिंह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 4, 2012 at 1:01pm

आध्यात्मिक चिंतन अपने आप को खोजता मन ---बेहतरीन भाव प्रणव रचना 

Comment by PHOOL SINGH on September 4, 2012 at 10:49am

पाण्डेय जी सादर प्रणाम

मेरे ब्लॉग पर आपका बहुत बहुत स्वागत है...........

फूल सिंह

Comment by PHOOL SINGH on September 4, 2012 at 10:48am

गणेश  जी सादर नमस्कार,

आपका बहुत बहुत शक्रिया

फूल सिंह


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 3, 2012 at 11:04pm

सत्य को रेखांकित करती इस रचना पर साधुवाद |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 3, 2012 at 10:25pm

आपकी रचना के लिये आपका सादर धन्यवाद, फूल सिंहजी.

Comment by PHOOL SINGH on September 3, 2012 at 5:29pm

प्राची जी नमस्कार,

आपका बहुत बहुत धन्यवाद ......

फूल सिंह


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 3, 2012 at 2:44pm

शान्ति की तलाश करते अशांत मन , व इस संसार के सभी साधनों को   हासिल करने के बाद भी कुछ अनजाना सा खोजते मन के सवालों को दर्शाती इस रचना हेतु बधाई आदरणीय फूल सिंह जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service