वक़्त भी क्या चीज है यारों
हर ओर हकूमत, इसकी छाई है
कही छाया है मातम की
तो कहीं बजी शहनाई है l
गिरगिट सा है रंग बदलता
हर्षित, भयभीत, भ्रमित कर
परिचय जग को अपना देता
रंक से राजा पल में बनता
वक़्त जिस पर मेहरबान हुआ
क्षणभर भी न टिकता जग में
काल का भयंकर जब वार हुआ
रावण राजा बड़ा निराला
अहं स्वयं के शिकार हुआ
क्षण भर में परलोक सिधारा
दुस्साहस जब वक़्त से
टकराने का था उसने किया
ग्रसित करता पलभर में
जिसका सामना वक़्त का
जग में यार हुआ
रोक सके जो रोके इसको
किसकी शामत आई है
क्षिप्र गति से दौड़ लगाता
ना देख सके इसकी कोई परछाई है
Comment
योगी जी नमस्कार. आपका बहुत बहुत सुक्रिया ..... फूल सिंह
गिरगिट सा है रंग बदलता
हर्षित, भयभीत, भ्रमित कर
परिचय जग को अपना देता
रंक से राजा पल में बनता
वक़्त जिस पर मेहरबान हुआ
क्षणभर भी न टिकता जग में
काल का भयंकर जब वार हुआ
बहुत सुन्दर , समय का महत्व बताती सार्थक रचना फूल सिंह जी !
रेखा जोशी जी प्रणाम,
आपका आपका बहुत बहुत सुक्रिया ......
फूल सिंह
वक्त की हर शह गुलाम वक्त का हर शह पर राज ,वक्त पर अति सुंदर रचना ,बधाई फूल सिंह जी
संदीप जी सादर प्रणाम,
आपके सुझाव के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद........
फूल सिंह
अशोक जी प्रणाम......
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
फूल सिंह
आदरणीय फूल सिंह जी सादर नमस्कार
आपकी रचना में वक़्त की ताकत बखूबी दिखाई देती है
किन्तु
"गिरगिट सा है रंग बदलता"
ये असहज कर रहा है
किन्तु वक़्त तो नियत ही चल रहा है उसमे आदमी ये सब काम करता है
वक़्त अपनी सीमा में नियत बंधा हुआ है
उसमे बदलाब न होना ही उसको इतना ताकतवर बना देता है
और इंसान में उसे बदल पाने की क्षमता नहीं है
यही कारण है की इंसान badlta है वक़्त के hisaab से
बहरहाल मेरी बधाई इस सार्थक वक़्त की रचना हेतु
वक्त की महिमा ही निराली है. बहुत सुन्दर. बधाई.
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