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बहुत खूबसूरत चौपाइयां कहीं हैं आपने आदरणीय कुमार गौरव अजीतेन्दु जी
सादर बधाई स्वीकार करें इस अनुपम काव्य रचना हेतु
बहुत बढ़िया छंद गौरव जी बधाई स्वीकारें.
गुरुजनों को समर्पित इस चौपाई छंद बद्ध सुन्दर सरस रचना हेतु बहुत बहुत बधाई कुमार गौरव जी.
कुमार जी नमस्कार.
आज के वक़्त की पुकार करती रचना..........बहुत सुंदर..
फूल सिंह
आदरणीय सतीश मापतपुरी सर........आपका दिल से आभार.......आपकी स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया से मन गदगद हो गया........शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.........
आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर........आपका बहुत-बहुत धन्यवाद........चौपाई छंद से सम्बंधित एक और मूल्यवान तकनीकी जानकारी देने के लिए आपका आभारी हूँ.....शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.........
वाह ..... वाह ..... क्या बात है कुमार गौरव साहेब ... क्या बात है .गुरु - श्रद्धा में समर्पित एक अनुपम रचना . आपने धन्य कर दिया उस गुरु को ,जिसने आपको अक्षर बोध कराया होगा . दिल से दाद दे रहा हूँ
भाई अजीतेन्दुजी, दोहे और चौपाई की युति में क्या ही प्रवहमान रचना प्रस्तुत किया है, आपने ! मन-हृदय बारम्बार झूम रहा है. वाह-वाह !
प्रस्तुत चौपाई तो तीन चार पंक्तियों के बाद ही इतनी प्रवाहमयी हो जाती हैं कि सस्वर पढ़ता चला गया. सच में आनन्द आ गया.
बहरहाल, निम्नलिखित पंक्तियों में थोड़ा और सुधार कर लें तो गेयता और सध जाये -
कुछ न सूझे भरम है भारी | लागे मोहि मत गई मारी ||
..
झूठ सदा नैनों में खटके | सत्य से कभी नहिं मन भटके ||
निम्नलिखित पंक्ति में मैं-कार खटक गया. मैं के प्रति इतना आग्रह सनातनी नहीं है.
मिले न कोई मुझ सम दूजा | मेरे कर्मों की हो पूजा ||
इसे बहुवचन कर दें तो भाव सार्वभौमिक हो जायँ. यथा --
मिले न कोई हम सा दूजा | अपने कर्मों की हो पूजा ||
हार्दिक शुभकामनाएँ. ..जय हो..
आदरणीय गणेश सर........आपका बहुत-बहुत धन्यवाद........
बहुत ही सुन्दर रचना, शिक्षक दिवस पर समर्पित इस छंद आधारित रचना पर बहुत बहुत बधाई |
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