ओबीओ में विशाल मेंला लगा था
छंद कवियों का तांता लगा था |
मैंने वहां ;दोहा;नाम से कविता दागी
प्राचार्य ने यह दोहा नहीं कह हटा दी |
मैंने फिर छन्-पकैयां लिख लगा दिए
गुरुवर ने नरम हो कुछ सुझाव दिए |
एक अलबेला कूद पड़े बोंले मानलो
सिष्य से प्राचार्य बना देंगे जानलो |
गुरुवर बोंले ये कर्म योगी का मंच है
यहाँ न कोई पञ्च और न सरपंच है |
मैंने भी सिष्य बन सीखने की ठान ली
'धरम' से 'अम्बर' तक की बात मानली |
एक दिन सक्रियता का प्रमाणपत्र आया
मेरा मन ख़ुशी से फूला नहीं समाया |
मैंने संकल्य लिया आचार्य नहीं बनना है
मुझे तो योग्य शिष्य बन सीखते रहना है |
योगीजी बोले अग्रज सीखने की उम्र नहीं होती
काव्य-रस में रमते गए, क्षुधा शांत नहीं होती |
सिखाने सिखाने का ओबीओ अनूठा मंच है,
यहाँ न कोई पञ्च है, न ही कोई सरपंच है |
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर
Comment
आदरणीय लड़ीवाला जी,
ओबीओ को समर्पित आपकी यह रचना वास्तव में प्रशंसनीय है! सीखने-सिखाने के लिए वैसे भी कोई उम्र नहीं होती! यहाँ सभी को उनकी क्षमता और योग्यता के अनुरूप सलाह और सम्मान मिलता है! हार्दिक बधाई स्वीकार करें!
आदरणीय लक्ष्मण जी सादर नमस्कार
सच कहा है आपने ओ बी ओ एक अनूठा मंच है
जहां से हर ओर सीखने और सिखाने के लिए अग्रज अनुज हर सदस्य एक दुसरे को सहयोग करते हैं
प्रतियोगिता के बाहर हैं सब के सब
एक सौहार्द का वातावरण है विवेचना अवश्य होती है
गलतियों में प्रकाश भी बखूबी डाला जाता है जिसे सीखना है उसका स्वागत है
जिसे नहीं सीखना वो विचार रख के अपना रास्ता नाप सकता है
ऐसी विशेष छूट और किसी मंच पे नहीं मिलती है
नया हो पुराना हो कोई फर्क नहीं पड़ता है
छोटा हो बड़ा हो तो भी कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता है
सीमाओं और मर्यादाओं का भान भी समय समय पे करा दिया जाता है
ऐसा मंच कोई और नहीं हो सकता है आदरणीय
आपने सच कहा
साधुवाद आपको इस बखान हेतु
आदरणीय
सादर, सच है सीखने की ललक कम नहीं होती. जब सीखाने वाले सुलभ हों. ओबीओ के लिए आपकी स्तुति सत्य है.
लक्ष्मण जी प्रणाम..
बहुत सुंदर सर.....
फूल सिंह
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