बिरादरी में ऊँची नाक रखने वाले, दौलतमंद, पर स्वभावतः अत्यधिक कंजूस, सुलेमान भाई ने अपने प्लाट पर एक घर बनाने की ठानी| मौका देखकर इस कार्य हेतु उन्होंने, एक परिचित के यहाँ सेवा दे रहे आर्कीटेक्ट से बात की| आर्कीटेक्ट नें उनके परिचित का ख़याल करते हुए, बतौर एडवांस, जब पन्द्रह हजार रूपया जमा कराने की बात कही, तो सुलेमान भाई अकस्मात ही भड़क गए, और बोले, "मैं पूरे काम के, किसी भी हालत में, एक हजार से ज्यादह रूपये नहीं दूंगा! यह सुनकर वह आर्कीटेक्ट वापस चले गए| इधर सुलेमान भाई ने भी सस्ते में ही, एक दो मंजिला शानदार घर बनवा डाला| इस बात को एक महीना भी नहीं बीता, तभी किसी व्यापारिक कार्यवश दिल्ली प्रवास के दौरान, सुलेमान भाई को खबर मिली कि, उनके शहर में एक तेज भूकंप आया है| हड़बड़ी में गिरते-पड़ते किसी तरह जब वे अपने घर पहुँचे, तो उन्होंने पाया कि परिचित का घर तो सीना ताने उनके सामने खड़ा था पर, मलवे की शक्ल में तब्दील उनके सपनों का घर, सारे परिवार को स्वयं में दफ़न किये हुए, उनकी कंजूसी को लगातार मुँह चिढ़ा रहा था | यह देखकर वे विक्षिप्त से हो उठे और अपना सिर जमीन पर पटकने लगे |
अकस्मात कन्धे पर किसी का सांत्वना भरा हाथ पाकर, उन्होंने आँसुओं से भरा हुआ स्वयं का चेहरा ऊपर उठाया, तो पाया कि, वही आर्कीटेक्ट, स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से, मलवे से सुरक्षित निकाली हुई, उनकी तीन वर्षीय जीवित पोती को गोद में उठाये हुए, उन्हें सकुशल सौंप रहे थे....... जिसे उन्होंने एकबारगी तो अपने कलेजे से लगा लिया किन्तु अगले ही पल उसे गोद से उतारा और आसमान की तरफ हाथ उठाकर बोले ऐ पाक परवरदिगार! ये क्या किया ! इससे तो अच्छा था मेरे फरीद को बचा लेते ....आखिर मेरा वंश तो चलता !
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
आदरेया रेखा जोशी जी, इस लघुकथा को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद !
आदरणीय अशोक जी, सच कहा आपने ....लघुकथा की सराहना के लिए हार्दिक आभार स्वीकारें ! भाईजी ! .सुलेमान साहब के कुछ पुण्यकर्म थे जिनसे उनकी पोती जीवित बच गयी...पर कंजूसी से बचाया गया नंबर एक व नंबर दो का धन समूल रिकार्ड सहित इसी मलवे की भेंट चढ़ गया.....
आदरणीय अम्बरीश जी
सादर प्रणाम,शुक्र है वह बच्ची जीवित बची वरना कंजूसी से बचाया धन किस काम आता. हर जगह कंजूसी ठीक नहीं सुन्दर संदेशात्मक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरेया रेखा जी आपने सच कहा ! अत्यधिक कंजूसी कभी-कभी बहुत भारी पड़ जाती है ! फिर भी शुक्र है कि उसी आर्कीटेक्ट की मदद से सुलेमान भाई की पोती तो सही सलामत मिल गयी !सादर
सार्थक लघुकथा आदरणीय अम्बरीश जी ,लोग थोड़ा पैसा बचाने के चक्र में भारी नुक्सान कर लेते है ,हार्दिक बधाई
आदरणीय कपूर रस्तोगी जी, इस लघुकथा को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद !
स्वागत है आदरेया सीमा जी, लघुकथा के सम्पूर्ण मर्म तक पहुँच कर बधाई प्रेषित करने के लिए आपके प्रति हार्दिक आभार आदरेया !
सस्ता रोये एक बार ,महँगा रोये बार बार .........पर सुलेमान भाई को उनकी कंजूसी ज़िंदगी भर का रोना दे गयी सावधान करती लघुकथा ...बधाई अम्बरीश जी
स्वागत है डॉ० प्राची जी, आपने बिल्कुल सही समझा ....कथा के मर्म तक पहुँचने के लिए हार्दिक धन्यवाद स्वीकारें ....सस्नेह
विशेषज्ञ की राय के बिना भूकंप संभावित क्षेत्रों में बिना मानकों का पालन कर के निर्माण कार्य करवाने की कितनी भारी कीमत अदा करनी पड़ सकती है, यह जाहिर करती इस लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अम्बरीश जी.
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