राजनीति के मंच पर, चढ़ गए आज दबंग
फूट फूट कर रो रहे, ध्वज के तीनों रंग
गधा जो देखन मैं चला, गधा न मिलया मोय
तब इक नेता ने कहा, मुझसा गधा न कोय
उजली खादी पहन के, करते काले काम
इनका बंटाधार अब, करदो मेरे राम
अभिव्यक्ति को घोंट कर, करो जेल में बन्द
लोकराज के नाम पर, करते जाओ गन्द
हाय हमारे मुल्क का, फूटा हुआ नसीब
उसने ही विष दे दिया, समझा जिसे तबीब
-जय हिन्द !
Comment
sahi kaha bhaai..........thik karunga
आदरणीय अलबेला सर जी सादर प्रणाम
आपके दोहों में भाव गज़ब के हैं या यूँ कहूँ आपकी कलम जब चलती है देश की एक तस्वीर हास्य के साथ मुखर हो जाती है
साधुवाद इन दोहों हेतु
किन्तु कुछ प्रवाह में कमी है
शायद
गधा जो देखन मैं चला १४ मात्रा
को यदि यूँ लिखें
गधा देखने मैं चला १३ मात्रा
"हाय" का प्रयोग भर्ती का लग रहा है
वहाँ आज कर दें तो कैसा रहेगा
एक बार फिर सादर बधाई आपको इन दोहों के लिए सर जी
अनुज की इस ढिठाई पर क्षमा कीजिये
जय हो अम्बर जी की.........
वाह मज़ा आ गया
चढ़ते ज़्यादा सही है...शुक्रिया
वैसे कहना मत किसी से " हमारे " तो मैंने आपके कहने से पहले ही कर दिया था क्योंकि सीमा जी ने संकेत दे दिया था ....हा हा हा
//राजनीति के मंच पर, चढ़ गए आज दबंग चढ़ गए में ए की मात्रा गिरानी पड़ रही है , सुझाव: चढ़ते
फूट फूट कर रो रहे, ध्वज के तीनों रंग //
शासन हो जो फ़ौज का, चढ़े लाल तब रंग.
मुँह से उगलें रक्त ये, कूटे जाँय दबंग.
//गधा जो देखन मैं चला, गधा न मिलया मोय 'जो' को गिरा कर पढ़ना पढ़ रहा है सुझाव : खोजने
तब इक नेता ने कहा, मुझसा गधा न कोय //
भले कहे निज को गधा, देता पंजे मार.
चालू नंबर एक का, नेता रंगा सियार..
//उजली खादी पहन के, करते काले काम
इनका बंटाधार अब, करदो मेरे राम //
राम करेंगे कुछ तभी, जब चाहें हम आप.
आखिर होते हैं हमीं, नेताओं के बाप..
//अभिव्यक्ति को घोंट कर, करो जेल में बन्द
लोकराज के नाम पर, करते जाओ गन्द//
हुआ जेल में बंद जो, वह तो इक फनकार.
आतंकी को देखकर, काँप जाय सरकार..
//हाय रे मेरे मुल्क का, फूटा हुआ नसीब 'रे मेरे' में भी मात्रा गिरानी पड़ रही है कृपया इसे 'हमारे' कर लें
उसने ही विष दे दिया, समझा जिसे तबीब//
____________________________
जैसा हमने था किया, वही रहे हैं भोग.
अब तो सारे एक हों, दूर करें यह रोग..
सूझ बूझ से काम लें, भला नहीं संग्राम.
आंसू पोछें हम सभी, करें स्वयं का काम..
चिंता है निज देश की, खींच दिया है चित्र.
शानदार दोहे रचे, तुम्हें बधाई मित्र.. सादर
जी सीमा जी.अवश्य ...
सादर
राजनीति के मंच पर, चढ़ गए आज दबंग
फूट फूट कर रो रहे, ध्वज के तीनों रंग
अभिव्यक्ति को घोंट कर, करो जेल में बन्द
लोकराज के नाम पर, करते जाओ गन्द........वाह बहुत बढ़िया दोहे अलबेला जी
दोहों के आँसू हमें ,व्यथित करें हैं हाय !
अंतिम दोहा देख लें ,अलबेले कविराय
धन्यवाद राजेश जी
वाह वाह सच कहा आंसू भरे हैं दोहों में जैसे भारत माता की आँखों में भरे हैं बचाओ इस देश को दगाबाजों से मक्कारों से -----बहुत बेहतरीन दोहे
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