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वो रहते है मेरे जानिब से हर पल बेख़बर यारों

जब भी रात होती है खिड़की खोल देते हैं,

क़यामत आएगी इक दिन पता उनको भी है यारों

इसी बहाने से वो  खिड़की से नज़ारा रोज़ लेते  हैं,

मुक़द्दर में था दीदार करना नूर ए हुस्न का

इसी के वास्ते पौधों को वो पानी रोज़ देते हैं,

क़यामत आ ही जाएगी मै मिट जाऊं भी शायद

इसी खौफ में शायद वो नमाजें रोज़ पढ़ते हैं,

सोया रहता हूँ जब मैं बेख़बर हो दीन दुनिया से

वो नीदों  में मेरी आकर बातें खूब करते हैं,

रुलाते हैं हंसाते है मुझसे रूठ जाते हैं

मनाते हैं तो न आने की धमकी दे के जाते हैं,

करूँ क्या कुछ नहीं मुझको पता की इश्क़ होता है क्या

करूँ जब हाल दिल का बयां लोगों से वो हँसते मुस्कुराते हैं,

अगर हम मिल न पाएं तो जुदाई भी भली यारों

मुबारक हों उसे खुशियाँ जो बक्शी हैं खुदाई ने  ,

तजुर्बा इश्क़ का शायर बना देता है आशिक को

ग़ज़ल बनकर आँखों से आंसू निकलते हैं................

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on September 23, 2012 at 3:01am

भाई जी मैंने आपके इस कलाम के लिए शुभ हार्दिक बधाई प्रेषित की है और आपके भविष्य के लेखन के लिए शुभकामना का भाव व्यक्त किया है
कोई व्यक्ति यदि काव्य के किसी रूप में अपने कलम को चलाता है तो निश्चित ही कलम किसी विधा विशेष पर केंद्रित होती है
आपका कलाम मुझे ग़ज़ल के निकट महसूस हुआ और मेरी शुभ कामना है कि आपके कलम से ग़ज़ल की निकटता बढ़ती जाए
मेरे शब्दों से यदि आपको किसी प्रकार का दुःख हुआ हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ
साथ ही यह भी कहूँगा कि काव्य को विधा विशेष पर केंद्रित करना और शिल्पगत विशेषताओं को ध्यान में रखना "सुन्दर कलाई में जड़ाऊ कंगन" वाली बात होती है इसमें बंधंवाली कोई बात तो नहीं दिखती

और आपका खुद के लिए कहना कि
हम कोई कवि या शायर  नहीं है जो कुछ बन पड़ा लिख दिया
समझ नहीं आया
भाई कविता लिखेंगे तो कवि और शायरी करेंगे तो शायर तो आप हो ही जायेंगे फिर आपके न मानने से क्या होता है :))))

मुझे आप इस रचना में शायर अधिक दिखे

पुनः हार्दिक बधाई

सादर

Comment by Rekha Joshi on September 21, 2012 at 6:59pm

तजुर्बा इश्क़ का शायर बना देता है आशिक को

ग़ज़ल बनकर आँखों से आंसू निकलते हैं....,अति सुंदर अभिव्यक्ति लोकेश जी ,हार्दिक बधाई 

Comment by Harvinder Singh Labana on September 21, 2012 at 5:08pm

क़यामत आ ही जाएगी मै मिट जाऊं भी शायद

इसी खौफ में शायद वो नमाजें रोज़ पढ़ते हैं,

सोया रहता हूँ जब मैं बेख़बर हो दीन दुनिया से

वो नीदों  में मेरी आकर बातें खूब करते हैं,

Bahut hi Khoob Janaab.. Behad Khoobsurat.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 21, 2012 at 1:26pm

लोकेश सिंह जी आपके शेर बहुत बढ़िया होते हैं आपमें ग़ज़ल विधा के हुनर पूर्णतः दिखाई देते हैं इन्ही भावों से एक बेहतरीन ग़ज़ल का जन्म हो सकता है मैंने भी यहाँ आकर बहुत कुछ सीखा है यहाँ ग़ज़ल की कक्षा समूह को ज्वाइन करेंगे तो मुझे पक्का विशवास है आप बहुत जल्द बहुत अच्छे ग़ज़लकार बन सकते हैं शुभकामनाएं 

मुक़द्दर में था दीदार करना नूर ए हुस्न का

इसी के वास्ते पौधों को वो पानी रोज़ देते हैं,  very nice 

 

Comment by लोकेश सिंह on September 21, 2012 at 10:05am

बागी जी  सदर अभिवादन स्वीकार करे ,आपका सुझाव प्रेरणादायक है हम  जैसे नए लोगो को बहुत कुछ सीखने  की आवश्याकता  है ,मेरे भावो की सराहना के लिए बहुत बहुत साधुवाद ...लोकेश सिंह

Comment by लोकेश सिंह on September 21, 2012 at 10:02am

वीनस जी मेरा अभिवादन  स्वीकार करे ,बधाई के लिए साधुवाद ,काव्य ईस्वर  की अनुकम्पा से स्फुरित होने वाला अहलाद्कारी  शब्द समूह है  जिसे मैने कलामब्ध्य कर पापके सामने प्रस्तुत किया है ,मुझे विश्वास है आप मेरी इस बात   सहमत अवश्य होगे ,मै अपने काव्य से किसी को ठेस नहीं पहुचाना  चाहता ,चाहे ओ शब्द्विन्न्यास के ज्ञाता हो या छंद विधान के ,हरपल हर कोई कुछ ना कुछ सीख  रहा है,अनुभव ही सीखने  का सबसे शसक्त माध्यम है ,सायद अनुभव के आप मुझसे अधिक धनी  हो  पार मेरा ऐसा कई उद्देश नहीं था की मै आप  जैसे गुनी लोगो की अवहेलना करू,हम कोई कवि या शायर  नहीं है जो कुछ बन पड़ा लिख दिया ,शेष आप खुद समझते है -- लोकेश सिंह   

Comment by राज़ नवादवी on September 21, 2012 at 9:48am

तजुर्बा इश्क़ का शायर बना देता है आशिक को

ग़ज़ल बनकर आँखों से आंसू निकलते हैं................

आपकी खूबसूरत पंक्तियों को पढ़ता - पढ़ता  ये शेर बन गया-

'दर्देइश्क, वामंदगी-ए-आशिक, बेचारगी-ए-दिल 

कहाँ मिलती हैं सबको एक साथ इतनी मंजिल' 

बधाई हो आपको. राज़ 

Comment by लोकेश सिंह on September 21, 2012 at 9:45am

राजीव  जी आपकी सराहना से हमे कुछ नया और चित्ताकर्षक  लिखने की प्रेरणा मिलेगी  ,सराहना के लिए बहुत -बहुत साधुवाद आपके स्नेह का आकांक्षी......लोकेश सिंह 

Comment by वीनस केसरी on September 21, 2012 at 12:46am

लोकेश जी सुन्दर शब्दों का चयन और सुन्दर भावाभिव्यक्ति इस रचना के प्रति लोगों को आकर्षित करने का प्रमुख कारण हो सकता है

हार्दिक बधाई स्वीकारें

शिल्प के प्रति सजगता ही हमारी रचनाओं को स्थाईत्व प्रदान करती है इन मायनों में गणेश जी का कमेन्ट सारगर्भित है आशा करता हूँ आप अवश्य ध्यान देंगे


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 20, 2012 at 10:19pm

लोकेश जी, इस रचना में भावों का अच्छा सम्प्रेषण है, इस रचना को आप ग़ज़ल विधा में भी कह सकते थे, ग़ज़ल विधा की जानकारी ओ बी ओ पर ही "ग़ज़ल की कक्षा" से ले सकते है,बधाई इस प्रस्तुति पर |

आगे भी आपकी और रचनाओं का और अन्य साथियों की रचनाओं पर आपके विचारों का स्वागत रहेगा |

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