For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिपोर्ट:जब बच्चन जी ने बेची 'मधुशाला'

दशहरा के अवसर पर १७ अक्टूबर २०१० को वाराणसी स्थित श्री शारदापीठ मठ सभागार में वरिष्ठ शायर श्री अनुराग शंकर वर्मा के ग़ज़ल संग्रह "कहने को जुबां है"का विमोचन और इस मौके पर कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया. मैं भी आमंत्रित था यह आयोजन कई मायनों में यादगार रहा. पहली बात यह कि श्री अनुराग जी अभी उम्र के ८३ वें वर्ष में चल रहे है और यह उनका पहला संग्रह है. जो उनकी स्वयं की इच्छा से नहीं बल्कि दूसरों के अधिक प्रयास से साकार रूप ले सका है. अनुराग जी का सारा लेखन उर्दू में है और उसे समेटना काफी मुश्किल था .
इस अवसर पर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.वी .कुटुंब शास्त्री मुख्य अतिथि थे. विशिष्ट अतिथि गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति करीब ८७ वर्षीय प्रो.बी.एम्. शुक्ल ने इस अवसर पर अपने दो संस्मरण सुनाये जिनके कारण मैंने इसे यहाँ लिखने का मन बनाया .उन्होंने बताया की स्कूली जीवन से ही विज्ञान का विद्यार्थी होने के बावजूद उनकी काव्य के क्षेत्र में अभिरुचि का कारण उन दिनों स्कूलों कॉलेजो में होने वाली अन्ताक्षरी थी .जिसमे आगे रहने के लिए साहित्यिक कविताओं का याद होना ज़रूरी था. एक बार कॉलेज के समय उनके शहर में डा. हरिबंश राय बच्चन किसी कवि सम्मलेन में आ रहे थे .दोस्तों ने जाने का मन बनाया पर अनुशासन के कारण बिना शिक्षक जाना मुश्किल था .शिक्षक तैयार हुए एक नहीं कई. बच्चन जी ने मधुशाला सुनायी .बार बार उसकी फरमाइश देर रात तक श्रोताओं की ओर से होती रही.और जब कवि सम्मलेन संपन्न हुआ तो बच्चन जी स्वयं मधुशाला की प्रतियाँ एक -एक रुपये में मंच के नीचे बैठ कर बेचने लगे .लोगों की खरीदने को भीड़ लग गयी . ८७ वर्षीय प्रो.शुक्ल ने बताया कि उस समय एक रुपये में कई दिनों का भोजन-नाश्ता हो जाता था .पर फिर भी उन्होंने अन्ताक्षरी के लिए उपयोगी समझते हुए और शौक़ से एक प्रति खरीदी.
प्रो.शुक्ल ने एक संस्मरण और सुनाया .वे तब मास्को दूतावास में द्वितीय राजदूत थे .दूतावास की ओर से मास्को में कवि सम्मलेन का आयोजन हुआ था .कवि श्री शिव मंगल सिंह सुमन ने कविता सुनायी 'नेहरू जी कुर्सी पर और गाँधी की हत्या'. पंडित नेहरू ने स्वयं बाद में जब इस कविता पाठ के बारे में जाना तो राज दूत से पूछा कि "क्या सचमुच भारतीय जनता मेरे बारे में ऐसा सोचती है?"
बहर हाल अब इस पुस्तक विमोचन समारोह पर लौटते हैं. अनुराग जी ने अपने कुछ शेर - मुक्तक भी समारोह में सुनाये-

" है बात फकत इतनी दुनिया न समझ पाई
परदे पे तमाशा है परदे में तमाशायी."

" आने पर यही समझा आया हूँ अकेला ही ,
जाने पर मगर जाना थी मौत भी साथ आयी."

* * * * * *

"न हिंदी से मतलब न उर्दू से मतलब,
न हिंदू से मतलब न मुस्लिम से मतलब
चमन में खिले हैं सभी साथ मिलकर
हमें तो फकत उनकी खुशबू से मतलब."

* * * * * * * * *
इस अवसर पर संतोष सरस के सञ्चालन में हुए हुए कवि सम्मलेन में पंडित श्रीकृष्ण तिवारी ,प्रो.जीतेंद्र नाथ मिश्र ,पंडित हरिराम द्विवेदी ,दानिश जमाल ,धर्मेंद्र गुप्त साहिल ,अरुण कुमार पाण्डेय अभिनव ,नरोत्तम शिल्पी और अन्य अनेक कवियों - शायरों ने भाग लिया.

Views: 520

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rash Bihari Ravi on October 27, 2010 at 3:11pm
bahut sundar jankari diya aap ne dhanyabad
Comment by Abhinav Arun on October 26, 2010 at 8:15am
प्रिय बागी जी और श्री शेषधर जी प्रसंग पसंद आया जानकर प्रसन्नता हुई |हमें ऐसे प्रसंग बेशक एक स्वर्णिम साहित्यिक दौर की याद दिलाते हैं | वो दिन फिर आयें ओ.बी.ओ. इस दिशा में एक अच्छा प्रयास साबित होगा ऐसी उम्मीद है|

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 21, 2010 at 8:09pm
अरुण भाई यह रिपोर्ट मैं पढ़ा और खो सा गया कि एक वो लोग भी थे, रति भर अहंकार नहीं, और एक आज का परिवेश है जिसमे एक दुसरे को प्रोत्साहित करने मे बड़े साहित्यकार अपना अपमान समझते है, उन्हे लगता है जैसे उनकी कुर्सी खतरे मे पड़ गई, यही सोच का परिणाम है कि नई पीढ़ी साहित्य के कई विधाओं से अनजान होती जा रही है, आज के Instant और फास्ट लाइफ ऐसे ही लोगो को साहित्य से दूर कर दिया है |
बहुत ही सुंदर आपका प्रयास है, इस रिपोर्ट के माध्यम से हम जैसों को प्रेरणा भी मिलती है |
Comment by Abhinav Arun on October 20, 2010 at 10:26am
अहा आदरणीय सौरभ जी नमस्कार. और आभार टिप्पणी के लिए. हमें अपने आस पास ही प्रेरक प्रसंगों की खोज कर उनसे लाभान्वित होना है. इसी प्रयास के तहत ये लिखा. प्रसंग की बातें मुझे भी छू गयीं.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2010 at 3:45pm
इस रिपोर्ताज़ के माध्यम से अरुणजी आपने बड़ा उपकार किया है.
अंताक्षरी के प्रति प्रो. बीएम शुक्ल के विचार बड़ा अनुकरणीय लगे. बच्चनजी से जुड़े क्षणों को प्रस्तुत कर आपने एक युग को इंगित किया है. वरिष्ठ शायर अनुराग वर्माजी के प्रति ’जिवेत् शरदः शतम्’ की पवित्र भावना के साथ आपको शुभकामनाएँ.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service