दशहरा के अवसर पर १७ अक्टूबर २०१० को वाराणसी स्थित श्री शारदापीठ मठ सभागार में वरिष्ठ शायर श्री अनुराग शंकर वर्मा के ग़ज़ल संग्रह "कहने को जुबां है"का विमोचन और इस मौके पर कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया. मैं भी आमंत्रित था यह आयोजन कई मायनों में यादगार रहा. पहली बात यह कि श्री अनुराग जी अभी उम्र के ८३ वें वर्ष में चल रहे है और यह उनका पहला संग्रह है. जो उनकी स्वयं की इच्छा से नहीं बल्कि दूसरों के अधिक प्रयास से साकार रूप ले सका है. अनुराग जी का सारा लेखन उर्दू में है और उसे समेटना काफी मुश्किल था .
इस अवसर पर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.वी .कुटुंब शास्त्री मुख्य अतिथि थे. विशिष्ट अतिथि गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति करीब ८७ वर्षीय प्रो.बी.एम्. शुक्ल ने इस अवसर पर अपने दो संस्मरण सुनाये जिनके कारण मैंने इसे यहाँ लिखने का मन बनाया .उन्होंने बताया की स्कूली जीवन से ही विज्ञान का विद्यार्थी होने के बावजूद उनकी काव्य के क्षेत्र में अभिरुचि का कारण उन दिनों स्कूलों कॉलेजो में होने वाली अन्ताक्षरी थी .जिसमे आगे रहने के लिए साहित्यिक कविताओं का याद होना ज़रूरी था. एक बार कॉलेज के समय उनके शहर में डा. हरिबंश राय बच्चन किसी कवि सम्मलेन में आ रहे थे .दोस्तों ने जाने का मन बनाया पर अनुशासन के कारण बिना शिक्षक जाना मुश्किल था .शिक्षक तैयार हुए एक नहीं कई. बच्चन जी ने मधुशाला सुनायी .बार बार उसकी फरमाइश देर रात तक श्रोताओं की ओर से होती रही.और जब कवि सम्मलेन संपन्न हुआ तो बच्चन जी स्वयं मधुशाला की प्रतियाँ एक -एक रुपये में मंच के नीचे बैठ कर बेचने लगे .लोगों की खरीदने को भीड़ लग गयी . ८७ वर्षीय प्रो.शुक्ल ने बताया कि उस समय एक रुपये में कई दिनों का भोजन-नाश्ता हो जाता था .पर फिर भी उन्होंने अन्ताक्षरी के लिए उपयोगी समझते हुए और शौक़ से एक प्रति खरीदी.
प्रो.शुक्ल ने एक संस्मरण और सुनाया .वे तब मास्को दूतावास में द्वितीय राजदूत थे .दूतावास की ओर से मास्को में कवि सम्मलेन का आयोजन हुआ था .कवि श्री शिव मंगल सिंह सुमन ने कविता सुनायी 'नेहरू जी कुर्सी पर और गाँधी की हत्या'. पंडित नेहरू ने स्वयं बाद में जब इस कविता पाठ के बारे में जाना तो राज दूत से पूछा कि "क्या सचमुच भारतीय जनता मेरे बारे में ऐसा सोचती है?"
बहर हाल अब इस पुस्तक विमोचन समारोह पर लौटते हैं. अनुराग जी ने अपने कुछ शेर - मुक्तक भी समारोह में सुनाये-
" है बात फकत इतनी दुनिया न समझ पाई
परदे पे तमाशा है परदे में तमाशायी."
" आने पर यही समझा आया हूँ अकेला ही ,
जाने पर मगर जाना थी मौत भी साथ आयी."
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"न हिंदी से मतलब न उर्दू से मतलब,
न हिंदू से मतलब न मुस्लिम से मतलब
चमन में खिले हैं सभी साथ मिलकर
हमें तो फकत उनकी खुशबू से मतलब."
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इस अवसर पर संतोष सरस के सञ्चालन में हुए हुए कवि सम्मलेन में पंडित श्रीकृष्ण तिवारी ,प्रो.जीतेंद्र नाथ मिश्र ,पंडित हरिराम द्विवेदी ,दानिश जमाल ,धर्मेंद्र गुप्त साहिल ,अरुण कुमार पाण्डेय अभिनव ,नरोत्तम शिल्पी और अन्य अनेक कवियों - शायरों ने भाग लिया.
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