अनजान हैं जो कह रहे, जाहिल हैं बेटियाँ
दुनिया में अब हर काम के, काबिल हैं बेटियाँ
तौरो तरीके बा-अदब, रखना हैं जानती
इस दौर में बेटों के मुक़ाबिल हैं बेटियाँ
कुर्बान खुद को कर रही, उल्फत-ए-मुल्क पर
अब जंग के मैदाँ में भी शामिल हैं बेटियाँ
मौजे तमन्ना गर कोई, तूफाँ खड़ा करें
जो थाम ले हर मौज वो साहिल हैं बेटियाँ
सबको यहाँ संवारतीं बन बेटी माँ बहन
इंसान की नेकी का ही हाशिल हैं बेटियाँ
संदीप पटेल "दीप"
सिहोरा , जबलपुर (म.प्र.)
Comment
जी सर जी मार्ग दिखाते रहिये सुझाते रहिये मंजिल हम पा कर दिखायेंगे आपको आशीर्वाद और स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
किसी प्रविष्टि को पोस्ट करने में अपनायी गयी शीघ्रता जोकि कई जानी-समझी बातें दोषपूर्ण कर दे, उचित है ऐसा कोई नहीं मानेगा. आप भी मत मानिये.
सधन्यवाद
यहाँ शायद दौर को केवल दौ पढ़ गया जल्दबाजी के चलते
आदरणीय वीनस जी , सादर प्रणाम
आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने मुझे इक बार फिर वक़्त दिया इसके लिए मैं शुक्रगुजार हूँ आपका
\\ याद रखें कि मुजारे के मुजाहिफ अरकान में दूसरे रुक्न की दूसरी मात्रा दीर्घ नहीं हो सकती है, क्योकि मुजारे सालिम का दूसरा रुक्न २१२२ फाइलातुन है जिसमें दूसरी मात्रा मूल रूप से लघु है\\
ये नयी जानकारी मुझे मिली है इसकी कोई जानकारी नहीं थी पहले मुझे
मैं तो बस दोनों मिसरों को इक बार पढ़ के देख लिया फिर जो बहर बनी उसपे सारे अशआर कह दिए ऐसा करता हूँ
पद्धति के बारे में धीरे धीरे जितनी जानकारी होती जाएगी सीखता जाऊँगा
बस आप यूँ ही स्नेह बनाये रखिये अनुज पर
आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार जो आपने इस ग़ज़ल को अपना बेशकीमती वक़्त दिया
फिर आपके कहे के अनुसार जो मैंने बहर ग़ज़ल के लिए राखी थी वो कहता हूँ
२ २ १ २ , २ २ १ २ , २ २ २ , २ १ २
उन्वान में जो बहर है उसमे गड़बड़ है ......................वक़्त की मार से मेरी ग़ज़ल में बहुत बुरा प्रभाव पद रहा है सर जी अब से बिना तक्तीह के पोस्ट नहीं करूँगा वादा है आपसे
आदरणीय गणेश बागी सर जी , आदरणीया राजेश कुमारी जी, आदरणीय भाई विन्ध्येश्वरी जी, आदरणीय भाई ब्रजेश जी सादर प्रणाम सहित
इस ग़ज़ल की पसंदगी के लिए तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार प्रेषित कर रहा हूँ
स्नेह अनुज पर बनाये रखिये
भाई संदीप पटेल जी प्रस्तुत बा-बहर मिसरों पर बधाई स्वीकार करें
अनजान हैं जो कह रहे, जाहिल हैं बेटियाँ
मौजे तमन्ना गर कोई, तूफाँ खड़ा करें
सबको यहाँ संवारतीं बन बेटी माँ बहन
बाकी अशआर भी अच्छे हैं मगर उनको बहर की कसौटी पर एक बार घिस कर देख लें
(याद रखें कि मुजारे के मुजाहिफ अरकान में दूसरे रुक्न की दूसरी मात्रा दीर्घ नहीं हो सकती है, क्योकि मुजारे सालिम का दूसरा रुक्न २१२२ फाइलातुन है जिसमें दूसरी मात्रा मूल रूप से लघु है)
बेटियों की अस्मिता पर कहने का आपने बेहतर प्रयास किया है. बधाई संदीप भाई.
एक बात : कृपया साझा करें कि ग़ज़ल के उन्वान की आपने तक्तीह कैसे की है ? सधन्यवाद .. .
bahut khoob sandeep ji, badhayi
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