For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस दौर में बेटों के मुक़ाबिल हैं बेटियाँ

अनजान हैं जो कह रहे, जाहिल हैं बेटियाँ
दुनिया में अब हर काम के,  काबिल हैं बेटियाँ

तौरो तरीके बा-अदब, रखना हैं जानती
इस दौर में बेटों के मुक़ाबिल हैं बेटियाँ

कुर्बान खुद को कर रही, उल्फत-ए-मुल्क पर
अब जंग के मैदाँ में भी शामिल हैं बेटियाँ

मौजे तमन्ना गर कोई, तूफाँ खड़ा करें   
जो थाम ले हर मौज वो साहिल हैं बेटियाँ

सबको यहाँ संवारतीं बन बेटी माँ बहन
इंसान की नेकी का ही हाशिल हैं बेटियाँ


संदीप पटेल "दीप"
सिहोरा , जबलपुर (म.प्र.)

Views: 516

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 4, 2012 at 12:54pm

जी सर जी  मार्ग दिखाते रहिये सुझाते रहिये मंजिल हम पा कर दिखायेंगे आपको आशीर्वाद और स्नेह यूँ ही बनाये रखिये


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 4, 2012 at 12:22pm

किसी प्रविष्टि को पोस्ट करने में अपनायी गयी शीघ्रता जोकि कई जानी-समझी बातें दोषपूर्ण कर दे, उचित है ऐसा कोई नहीं मानेगा. आप भी मत मानिये.

सधन्यवाद

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 4, 2012 at 12:09pm

यहाँ शायद दौर को केवल दौ पढ़ गया जल्दबाजी के चलते

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 4, 2012 at 12:06pm

आदरणीय वीनस जी , सादर प्रणाम
आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने मुझे इक बार फिर वक़्त दिया इसके लिए मैं शुक्रगुजार हूँ आपका
\\ याद रखें कि मुजारे के मुजाहिफ अरकान में दूसरे रुक्न की दूसरी मात्रा दीर्घ नहीं हो सकती है, क्योकि मुजारे सालिम का दूसरा रुक्न २१२२ फाइलातुन है जिसमें दूसरी मात्रा मूल रूप से लघु है\\
ये नयी जानकारी मुझे मिली है इसकी कोई जानकारी नहीं थी पहले मुझे
मैं तो बस दोनों मिसरों को इक बार पढ़ के देख लिया फिर जो बहर बनी उसपे सारे अशआर कह दिए ऐसा करता हूँ
पद्धति के बारे में धीरे धीरे जितनी जानकारी होती जाएगी सीखता जाऊँगा
बस आप यूँ ही स्नेह बनाये रखिये अनुज पर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 4, 2012 at 12:06pm

आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपका बहुत बहुत शुक्रिया सहित सादर आभार जो आपने इस ग़ज़ल को अपना बेशकीमती वक़्त दिया
फिर आपके कहे के अनुसार जो मैंने बहर ग़ज़ल के लिए राखी थी वो कहता हूँ

२ २ १ २ , २ २ १ २ , २ २ २ , २ १ २

उन्वान में जो बहर है उसमे  गड़बड़ है ......................वक़्त की मार से मेरी ग़ज़ल में बहुत बुरा प्रभाव पद रहा है सर जी अब से बिना तक्तीह के पोस्ट नहीं करूँगा वादा है आपसे

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 4, 2012 at 11:58am

आदरणीय गणेश बागी सर जी , आदरणीया राजेश कुमारी जी, आदरणीय भाई विन्ध्येश्वरी जी, आदरणीय भाई ब्रजेश जी सादर प्रणाम सहित
इस ग़ज़ल की पसंदगी के लिए तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार प्रेषित कर रहा हूँ
स्नेह अनुज पर बनाये रखिये

Comment by वीनस केसरी on October 4, 2012 at 2:24am

भाई संदीप पटेल जी प्रस्तुत बा-बहर मिसरों पर बधाई स्वीकार करें

अनजान हैं जो कह रहे, जाहिल हैं बेटियाँ

मौजे तमन्ना गर कोई, तूफाँ खड़ा करें   

सबको यहाँ संवारतीं बन बेटी माँ बहन

बाकी अशआर भी अच्छे हैं मगर उनको बहर की कसौटी पर एक बार घिस कर देख लें

(याद रखें कि मुजारे के मुजाहिफ अरकान में दूसरे रुक्न की दूसरी मात्रा दीर्घ नहीं हो सकती है, क्योकि मुजारे सालिम का दूसरा रुक्न २१२२ फाइलातुन है जिसमें दूसरी मात्रा मूल रूप से लघु है)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2012 at 10:28pm

बेटियों की अस्मिता पर कहने का आपने बेहतर प्रयास किया है. बधाई संदीप भाई.

एक बात : कृपया साझा करें कि ग़ज़ल के उन्वान की आपने तक्तीह कैसे की है ?  सधन्यवाद .. .

Comment by Brajesh Kant Azad on October 3, 2012 at 9:06am

bahut khoob sandeep ji, badhayi

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 2, 2012 at 3:32pm
भाई संदीप जी बहुत खूब अशआर कहा आपने।हर शेर दिल को छू रहा है।दिली मुबारकबाद।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
11 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
21 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
23 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service