"अच्छा लगता है" के तारतम्य में कुछ मुक्तक पेश हैं दोस्तों
कुछ लोगों को गंजे पर मुस्काना अच्छा लगता है
झड़ते अपने बालों को सहलाना अच्छा लगता है
इक दिन वो भी ऐसे ही हो जायेंगे हँसने लायक
लेकिन हँसते हँसते मन बहलाना अच्छा लगता है
टपरे पे जा सौ का नोट दिखाना अच्छा लगता है
इतरा इतरा कर वो पान चबाना अच्छा लगता है
मिलना है मुस्किल छोटे से टपरे में खुल्ले लेकिन
सौ सौ के नोटों को यूँ तुडवाना अच्छा लगता है
हीरोइन की कर तारीफ़ जलाना अच्छा लगता है
अपनी टूटी फूटी राग सुनाना अच्छा लगता है
आँखों में शोले भर के सुनती रहती वो गुस्से में
बीबी को यूँ सारी रात जगाना अच्छा लगता है
मालिक को नौकर पर डांट लगाना अच्छा लगता है
नौकर को फिर अपना मुँह लटकाना अच्छा लगता है
हड्डी लटका के तुम उसको चाहे जितना भी मारो
कुत्ते को तो अपनी पूंछ हिलाना अच्छा लगता है
खूब गरीब वतन है ये दिखलाना अच्छा लगता है
अंग्रेजों को जबतब भारत आना अच्छा लगता है
आव-भगत में उनकी सारा भारत जुटता है क्यूंकि
बच्चों को अंग्रेजी भूत दिखाना अच्छा लगता है
बीबी को सौहर से ही शर्माना अच्छा लगता है
अपनी सुन्दरता पे खुद इतराना अच्छा लगता है
तुमसे सुन्दर इस दुनिया में होगा क्या दूजा कोई
ऐसा कह के सौहर को भरमाना अच्छा लगता है
भारत में लोगों को ऐसी बहुत सी चीज़ें भाती हैं जैसे
चोरों को खुद कुर्सी पर बैठाना अच्छा लगता है
फिर उसको ही चोरी पर गरियाना अच्छा लगता है
अपना उल्लू सीधा करने के खातिर गलती करके
अपनी ही गलती पर फिर पछताना अच्छा लगता है
......................संदीप पटेल "दीप"..........................
सिहोरा जबलपुर (म. प्र.)
Comment
अच्छा लगता है .. . वाकई !
इस जमाने में दूसरों पर व्यंग करना अच्छा लगता है
व्यंग रचना पढ़ बार बार मुस्कराना अच्छा लगता है
संदीप कुमार पटेल ने व्यंग रचना दी अच्छा लगा है
वाह वाह ! बहुत खूब ! मजेदार रचना..
संदीप जी, हास्य और कटाक्ष भरें मुक्तकों को पढ़ना अच्छा लगता है, बहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति, बधाई हो |
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