For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तीन मुक्तक ......//माँ

 

इस रक्त के संचार पे अधिकार तुम्हारा है 

श्वांसो के हरेक तार पे उपकार तुम्हारा  है
आँखों में चमकते हैं मुस्कान के जो मोती 
कुछ और नहीं माँ वो बस प्यार तुम्हारा है 
 
 
 
बिन बोले बिन उपदेश दिए ,कर्मो की गीता समझाई 
तुमने अपनी दिनचर्या से,पल-पल की कीमत बतलाई 
जब रुके कदम मन विकल हुआ श्रीहत साहस का स्वर्ण हुआ 
माथे पर उत्प्रेरित चुम्बन करती माँ मन में मुस्काई 


मेरी आँखों की पीर चुरा तुम हँसी वहाँ भर  जाती हो 
तुम परी हो मेरे सपनों की हर मुश्किल हल कर जाती हो
तुम माँ हो या जादूगरनी ,विस्मित हूँ ,दुर्गम दूरी से  
कैसे मेरे अनबोले ज़ख्मो पर मरहम धर जाती हो 

Views: 1504

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by seema agrawal on October 5, 2012 at 3:32pm

विनीता जी बहुत बहुत शुक्रिया ....सच कहूं तो मेरे लिए माँ बचपन में भी मेरी परी ,आज भी है और हमेशा रहेगी ...

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 5, 2012 at 2:09pm
माँ के उपकार का बदला नहीं चुकाया जा सकता 
उसकी मुस्कान और उसके प्यार अतुलनीय है 
उसका प्रारंभिक ज्ञान तो गुरु ज्ञान से बढ़कर है 
यह सब कुछ उस नारी शक्ति की महिमा है | अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा अग्रवाल जी  
Comment by Arun Sri on October 5, 2012 at 1:22pm
तुम माँ हो या जादूगरनी ,विस्मित हूँ ,दुर्गम दूरी से  
कैसे मेरे अनबोले ज़ख्मो पर मरहम धर जाती हो ........... दिल को छू गई आपकी पंक्तियाँ ! निश्शब्द हूँ !
 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2012 at 12:38pm
मेरी आँखों की पीर चुरा तुम हँसी वहाँ भर  जाती हो 
तुम परी हो मेरे सपनों की हर मुश्किल हल कर जाती हो
तुम माँ हो या जादूगरनी ,विस्मित हूँ ,दुर्गम दूरी से  
कैसे मेरे अनबोले ज़ख्मो पर मरहम धर जाती हो ---वाह दिल छू गई ये पंक्तियाँ तो बहुत ही प्यारी रचना 

 

Comment by Vinita Shukla on October 5, 2012 at 12:01pm
"तुम माँ हो या जादूगरनी ,विस्मित हूँ ,दुर्गम दूरी से  
कैसे मेरे अनबोले ज़ख्मो पर मरहम धर जाती हो"
सुन्दर और दिल को छूने वाली प्रस्तुति. बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service