डाली हरसिंगार की झूम उठी
मनमोहक फूलों के बोझ से
बल खाती हुई छेड़ जो रही थी
उसे ईर्ष्यालु सुगन्धित पवन
झर रहे थे पुहुप आलौकिक
दिल ही दिल में मगन
हर कोई चुन रहा था
सुखद स्वप्न बुन रहा था
अलसाई उनींदी पलकों
के मंच पर
ये द्रश्य चल रहा था
मेरा भी मन ललचाया
एक पुष्प उठाया
अंजुरी में सजाया
तिलस्मी पुष्प आह !
ताजमहल रूप उभर आया
अद्वित्य ,अद्दभुत
मेरे स्वयं ने मुझे समझाया
ये तेरा नहीं हो सकता
तुमने गलत पुष्प उठाया
मुस्काई और बोली
हर सिंगार लता
मुझको है सबका पता
जो दिन के उजाले में
अपने से छल करते हैं
वो उनींदी आँखों से तमस में
मेरे इन पुहुपों को चुनते हैं
इनमें बंद हैं सभी के
स्वप्नों के महल
हाँ ताज महल !!!
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अति सुन्दर रचना है आदरणीया राजेश जी, बधाई स्वीकार करें!
हर सिंगार लता
मुझको है सबका पता
जो दिन के उजाले में
अपने से छल करते हैं
वो उनींदी आँखों से तमस में
मेरे इन पुहुपों को चुनते हैं
इनमें बंद हैं सभी के
स्वप्नों के महल
हाँ ताज महल !!!
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