महंगाई
महंगाई ने कुछ ऐसा रंग दिखाया है
आम सी दाल को भी खास बनाया है
जो दाल रोटी खा प्रभु के गुण गाते थे
प्रभु को भूल आज,वो दाल की पूजा कर जाते हैं
फास्ट फ़ूड खाने वाला आज दाल भी शौक से खाता है
सूट पहनकर इतराता हुआ खुद के रौब दिखाता है
धरती की दाल को आसमान पे पहुँचाया है
महंगाई ने कुछ ऐसा रंग दिखाया है...
मीठी लगने वाली चीनी अब तीखी तीखी लगती है
रोज़ सुबह की चाय बिन चीनी के ही बनती है
सफ़ेद रंग का दूध अब काला सा पड़ गया
दूध से बना हर उत्पाद महंगाई से सड़ गया
घी तो बस तीज त्योहारों में ही मिल पाता है
भले उसमें कुछ न बने , देखने से काम चल जाता है
भोजन की हर वस्तु को हमने घर में सजाया है
महंगाई ने कुछ ऐसा रंग दिखाया है...
शर्मा जी जो रोज़ ऑफिस कार से थे जाते
आजकल बगल के पार्क में हैं साइकिल चलाते
सब्जी किराना रोज़ स्कूटर से थे ले आते
अब बाजारों में दीखते हैं पैदल ही झोला हिलाते
प्रेमी जोड़े भी मोबाइल पर बतियाना पसंद करते हैं
बांहों में बाहें डाले लॉन्ग ड्राइव पर जाने से डरते हैं
पेट्रोल- डीजल ने हर दिल हर घर जलाया है
महंगाई ने कुछ ऐसा रंग दिखाया है...
बच्चो को खुद ही स्कूल छोड़ खुद ही टियुशन पढाता हूँ
इस तरह कमाई के चार पैसों में से दो भविष्य के लिए बचाता हूँ
हर महीने कॉपी और कलम के खर्चो से हैरान सा रहता हूँ
कम लिखो, ज्यादा पढो, याद करो बच्चो से यही कहता हूँ
कभी कभी बच्चो को घुमाने भी ले जाना पढता है
आइस क्रीम से गला खराब होगा ये कहकर पोपकोर्न खिलाना पड़ता है
मेरी मजबूरी ने बच्चो का मन भी तरसाया है
महंगाई ने कुछ ऐसा रंग दिखाया है...
श्रीमती जी को भी चाहिए साड़ी और गहना हर बार
इसी चक्कर में लेना पड़ता है ब्याज पर थोडा ऊधार
हर महीने तनख्वाह से ऊधारी का ब्याज चुकता हूँ
नए ऊधार ले कर उसके बोझ तले दब जाता हूँ
कभी चूड़ी, कभी बिंदी से श्रृंगार कर खुद को सजा लिया
श्रीमती के श्रृंगारों ने मुझे भिखारी बना दिया
अब मत मांगो कुछ हर बार उन्हें समझाया है
महंगाई ने कुछ ऐसा रंग दिखाया है...
महंगाई ने सबको कमज़ोर बना दिया
बच्चा बूढा जवान सबको चोर बना दिया
गृहस्थी चले कैसे महंगाई ने कर दिया मजबूर
बड़ा बनने के हर सपने के कर दिया चूर चूर
अगली बार सब बेहतर होगा ये नेता कहते हैं
इसी आस में हम रोज़ जीते रोज़ मरते हैं
आलू प्याज सोना चांदी सबके लिए आंसुओं को बहाया है
मंहगाई ने कुछ ऐसा रंग दिखाया है...
रणवीर प्रताप सिंह
Comment
@ rajesh kumari sahi kaha aapne kush dino baad to kuch likhne ko bhi nahin rahega...
सच में महंगाई ने बहुत कुछ लिखने पर मजबूर कर दिया
@ajay sharma thank you so much sir
tremendous effort,,,it is showing a great sense of human plights , different live-emotions similies are good
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