शक्ति रूपिणी हे माँ अम्बा l वंदन स्वीकृत कर जगदम्बा ll
जय जय जय हे मातु भवानी l नत मस्तक हैं हम अज्ञानी ll
थामो माँ चेतन की डोरी l कर दो मन की चादर कोरी ll
हर क्षण हो इक नया सवेरा l तव प्रांगण नित रहे बसेरा ll
माँ ममता से हमको भर दो l हृदय प्रेम का सागर कर दो ll
अंगारे भी पग सहलाएँ l पुष्प बनें सुरभित मुस्काएँ ll
नयन समाय प्रेम की धारा l भटकन मन की पाय किनारा ll
वाणी बहे अमृत सी निर्मल l कर्म सहस्त्रान्शु सम उज्जवल ll
ऊँच – नीच के भ्रम मिट जाएँ l छुआ - छूत न हमें छू पाएँ ll
अहं – क्रोध से मुक्त रहे मन l लोभ मोह के टूटें बंधन ll
मधु कैटव नहिं हमें सताएँ l पाटन मध्य न हमें फँसाएँ ll
हर लो माँ चहुँ दिशि अँधियारा l तव ज्योति का करो उजियारा ll
अष्टसिद्धि नवनिधि की दाता l श्रद्धानत हैं हे जगमाता ll
हर इक कण में तुमको पाएँ l हम बूँदें, सागर बन जाएँ ll
तुष्ट हृदय कर झोली भर दो l चिदानन्द की वर्षा कर दो ll
सत रज तम के पार करो माँ l यह वंदन स्वीकार करो माँ ll
डॉ. प्राची
Comment
आदरणीय प्रदीप जी
शक्ति स्वरूपा माँ दुर्गा को समर्पित चौपाई छंद पर आपकी सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद
माँ ममता से हमको भर दो l हृदय प्रेम का सागर कर दो ll
अंगारे भी पग सहलाएँ l पुष्प बनें सुरभित मुस्काएँ ll
बहुत खूब
आदरणीय प्राची जी, सादर
आदरणीया सीमा जी, चौपाई छंद पर मेरे प्रथम प्रयास को आपका हामी भरा अनुमोदन मिलना लेखन को उत्साहित कर रहा है, कथ्य को सराहने के लिए बहुत बहुत आभार.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति प्राची चौपाई छंद में अद्भुत गेयता होती है जो आपकी इस प्रस्तुति में भरपूर मिल रही है आनंद आ गया पढ़ कर
शब्द चयन और संयोजन भी खूबसूरत ...भावों की विनम्रता और स्पष्टता के लिए ढेरों बधाई ...अनंत शुभकामनाएं ... माँ आपकी वंदना स्वीकार करें
नयन समाय प्रेम की धारा l भटकन मन की पाय किनारा ll
वाणी बहे अमृत सी निर्मल l कर्म सहस्त्रान्शु सम उज्जवल ll......वाह
आदरणीय गणेश बागी जी, आपका कहना बिलकुल यथोचित है, अम्बे और जगदम्बे कर के माधुर्य बढ़ रहा है. हार्दिक आभार इस सुझाव के लिए. और इस अभिव्यक्ति को सराहने के लिए.
शक्ति रूपिणी हे माँ अम्बे l वंदन स्वीकृत कर जगदम्बे ll
पता नहीं क्यों मैं इस तरह से ज्यादा खूबसूरती से पढ़ पा रहा हूँ , माँ की स्तुति बहुत ही खूबसूरती से किया है आदरणीया | इस अभिव्यक्ति पर बहुत बहुत बधाई और दशहरा पर्व की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार हो |
माँ आदिशक्ति के चरणों में समर्पित इस वंदन को आपने पसंद कर सराहा, इस हेतु आपकी ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडिवाला जी.
माँ ममता से हमको भर दो l हृदय प्रेम का सागर कर दो ll
अंगारे भी पग सहलाएँ l पुष्प बनें सुरभित मुस्काएँ ल--------बहुत गहरे भाव
नयन समाय प्रेम की धारा l भटकन मन की पाय किनारा ll
वाणी बहे अमृत सी निर्मल l कर्म सहस्त्रान्शु सम उज्जवल ल - हार्दिक बधाई स्वीकारे आदरणीय डॉ. साहिबा
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, चौपाई छंद पर इस छोटे से प्रयास को सराह लेखन कर्म को प्रोत्साहित करने के लिए आपकी ह्रदय से अभारी हूँ. नवरात्र में यह रचना लिखी गयी जब देखा कि लोग माँ दुर्गा से क्या क्या मांगते हैं, धन, ऐश्वर्य, स्वास्थ्य, व्यापार में उत्तरोत्तर वृद्धि, दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की, पुत्र प्राप्ति, बच्चों का विवाह, आदिआदि. माँ के प्रति प्रेम का यह स्वार्थ परक रूप देख कष्ट पहुंचा और इस वंदन को जगज्जननी को समर्पित कर पायी.
राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं
सादर.
आदरणीय राज नवादवी जी, रचना के अंतर्भावों को आपका अनुमोदन मिलने से ह्रदय अभिभूत है, हार्दिक आभार स्वीकार करें. सादर.
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