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बावरिया हो भागती, सजनी ज्यों पिय ओर l

दीवानी मीरा बनी, थाम कन्हैया डोर ll

थाम कन्हैया डोर, प्रेम में सुध बुध हारी l

मोहबंध सब त्याग, पुकारूँ बस गिरधारी ll

प्राण भक्ति में लीन, ओढ़ चूनर केसरिया l

प्रभु संग मधुर मिलन, हुई जोगन बावरिया ll

*********************

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 25, 2012 at 5:57pm

आदरणीय फूल सिंह जी हार्दिक आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 25, 2012 at 4:53pm

मुझे अच्छी लगी 

बधाई. 

Comment by PHOOL SINGH on November 12, 2012 at 1:23pm

प्राची जी प्रणाम.......

सुंदर अतिसुंदर भावपूर्ण रचना  ......"सपरिवार सहित आपको शुभ दीपावली"

फूल सिंह


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 3, 2012 at 9:53am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,

इस रचना के भावों की शुद्धता और गहनता को अनुमोदित करने हेतु आपकी हृदय से आभारी हूँ. सादर.

शिल्पगत चर्चा पर आपका कथन बहुत सार्थक और लाभप्रद है..हार्दिक आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 3, 2012 at 9:47am

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाडिवाला जी यह कुण्डलिया पसंद करने के लिए आभार. टिप्पणियों के माध्यम से लेखन के सूक्ष्मतम रहस्य भी साँझा होते हैं, इसलिए उनको ध्यान पूर्वक पड़ना रचनाकारों के लिए बहुत लाभप्रद होता है. 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 2, 2012 at 11:29am

सुन्दर दोहा-रोला और साथ ही सीमाजी की टिप्पणियों से प्राप्त लाभप्रद जानकारी के लिए आभार स्वीकारे  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 2, 2012 at 10:52am

//प्रभु संग मधुर मिलन, हुई जोगन बावरिया//

कितनी अद्भुत, साथ ही कितनी धुर विरोधी चिर संयुज्य भावनाएँ शब्दाकार ले रही हैं ! सर्वोच्च सम्मिलन की सर्वोत्तम परिणति जोगन (योगिनी का अप्रभंश) के भाव की वाहक ! ’वहाँ’ हो कर न होने का चिरंतन भाव. ’प्राप्ति’ के प्रति कैसी निर्लिप्तता. वाह ! ऐसे उत्कृष्ट विचारों का होना ही हमारी संस्कृति द्वारा निर्धारित सम्बन्धों का उन्नत स्वरूप है.

शिल्प पर टिप्पणियों के माध्यम से हुई चर्चा समीचीन है. मिलन को ग़ज़ल के अरुज़ के अनुसार १ २ यानि लघु-गुरु का रूप देना उचित नहीं, चाहे उच्चारण का आवरण ही क्यों न लिया जाय.

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 1, 2012 at 6:57pm

आदरणीया सीमा जी, आप बिलकुल सही कह रही हैं, शब्दों को आगे पीछे करने से आपके द्वारा बताये रूप //मधुर मिलन प्रभु संग,हुई जोगन बावरिया // में प्रवाह उचित लग रहा है. हार्दिक आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 1, 2012 at 6:55pm

आदरणीय इ. वीर प्रकाश जी , इस रचना का अनुराग आप तक संप्रेषित हुआ, आपकी आभारी हूँ. सादर.

Comment by seema agrawal on November 1, 2012 at 11:03am

प्राची मुझे लगता है बहुत ज्यादा  परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है 
प्रभु संग मधुर मिलन, हुई जोगन बावरिया ll//को मधुर मिलन प्रभु संग,हुई जोगन बावरिया करने से यह ठीक  हो जाएगा 

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