लघुकथा : सुहागन
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//प्रेम के हस्ताक्षर के बिना रिश्तों का कोई भी चेक बेमानी है और कभी भी भुनाया नहीं जा सकता//
आहा !! लघु कथा को आपने निचोड़ कर एक पक्ति में समेट दिया है भाई राज नवद्वी जी, आप जैसे पाठकों की प्रतिक्रिया से लेखन सफल लगने लगता है आदरणीय | बहुत बहुत आभार इस उत्साहवर्धन हेतु |
बहुत खूब, कहानी की पराकाष्ठा ने कहानी के मर्म को जैसे सातवें आसमान पे पहुंचा दिया हो- "डाक्टर क्या करेगा मम्मी, हो सके तो पापा से कह दो कि, बन्दूक के बल पर मेरी गोद भी भरवा दें |"
प्रेम के हस्ताक्षर के बिना रिश्तों का कोई भी चेक बेमानी है और कभी भी भुनाया नहीं जा सकता!
आदरणीय अनिल चौधरी जी, लघुकथा के माध्यम से जो सन्देश मैं देना चाहता हूँ वो आप तक पहुँच रहा है यह मेरे लिए उत्साहित करने वाला है, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार | रही बात भुक्तभोगी की तो भाई जी यह इंजिनियर "बागी" है या तो इस पार या उस पार :-)
धन्यवाद आदरणीय बागी जी !
आदरणीया विनीता शुक्ला जी, आपके द्वारा सराहना पा कर मैं बहुत ही गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ, आभार आपका |
गणेश जी सादर नमस्कार,
आदरणीय भाई सौरभ पाण्डेय जी, लघु कथा के विषय को और विस्तृत करने और सनातनी विवाहों के वर्गीकरण को बताने हेतु बहुत बहुत आभार |
लघु कथा को आशीर्वाद देने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई अम्बरीश जी, आप का कहना सही है की ऐसी कृत्यों को कतई स्वीकृति नहीं देना चाहिए |
सराहना हेतु आभार भाई पियूष द्विवेदी जी, इस विषय पर बनी फिल्म मैंने नहीं देखी है |
आदरणीय प्रधान संपदाक श्री योगराज प्रभाकर जी, आपके द्वारा लघुकथा को सराहा जाना पुरस्कार सदृश है,लघुकथा विधा में जो कुछ भी मैं रच पाता हूँ वो सब आप ही का देन है, आपकी लघुकथाओं को पढ़ पढ़ कर और अपनी लघुकथाओं पर आपके द्वारा प्रदत्त सुधारात्मक टिप्पणियों ने मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा सदैव दी है, बहुत बहुत आभार आपका |
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