For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : सुहागन 

(मेरे द्वारा ही लिखी गई भोजपुरी लघुकथा 'पकडुआ बियाह' का हिंदी रूपांतरण)

बहुत दिनों बाद सुमन मायके आई है । अपने कमरे में जाते ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे । सात साल पहले की घटना आँखों के सामने किसी फ़िल्म की भाति दिखने लगी | सुमन पंद्रह साल की थी और हाई स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की थी | संध्या का समय था, तीन-चार मोटरसाईकल तेजी से दरवाजे पर आकर रुकीं । रवि को उसके पापा, मामा और चार-पांच लोग बन्दूक के बल पर जबरदस्ती उठा कर लाये थे और कमरे में बिठा कर बाहर से कुण्डी लगा दी गयी, वह कुछ भी नहीं समझ सकी कि आखिर यह हो क्या रहा है | आनन-फानन में उसे नई साड़ी और रवि को कुर्ता एवं पीली धोती पहनाकर आँगन में अगल-बगल बैठा दिया गया | पंडितजी  के मुँह से मंत्र और रवि की आँखों से आँसू धाराप्रवाह बहते रहे | रवि का हाथ पकड़ कर जबरदस्ती उसकी मांग में सिंदूर डलवा दिया गया और सुमन सुहागन हो गई थी | 

सुबह दरवाजे पर बहुत सारे लोग एकत्रित हो गये थे, रवि के पिता जी और उनके कुछ रिश्तेदार भी आये हुए थे, मान मनौव्वल और धमकी का दौर चल रहा था | एक तरफ सुमन के पापा रवि के पिता जी के पैरों पर गिर ’गलती हो गई’ कह कर माफ़ी मांग रहे थे तो दूसरी तरफ सुमन के मामा धमकी दे रहे थे, काफी वाद-विवाद हुआ, अंततः रवि के घर वाले दबाव में आकर सुमन को अपनाने को तैयार हो गये और सुमन विदा होकर रवि के घर आ गई | सुमन समझ गई थी कि उसकी शादी रवि की मर्जी के विपरीत कर दी गई है | 

रवि उस वर्ष इंजीनियरिंग द्वितीय वर्ष के छात्र थे । प्रथम वर्ष में रवि ने कॉलेज में टॉप किया था | शादी के बाद रवि बिलकुल चुप रहने लगे, किसी से कोई बात नहीं करते, केवल अकेले बैठ कर रोया करते थे | एक दिन माँ जी के समझाने पर रवि खूब रोये और केवल एक वाक्य बोले, "माँ उन लोगों ने तो हमारी सारी इज्जत-प्रतिष्ठा का हरण कर लिया ना" पूरा परिवार सदमे में था और सुमन उस घर में बेचारी बन कर रह गई थी | रवि उस वर्ष परीक्षा भी छोड़ दिये | 

खैर, समय का चक्र चलता रहा, रवि पढ़ लिखकर एक सरकारी विभाग में इंजिनियर हो गये हैं, सुमन को भी परिवार के सभी लोग सारी बातों को भुला कर स्वीकार कर लिये, किन्तु रवि नहीं | 

माँ की आने की आहट पा कर सुमन स्वयं को सामान्य करने की असफल प्रयास करने लगी | बेटी का उदास और आँसू सना चेहरा देख माँ एक साथ कई प्रश्न पूछ बैठीं |
क्या बात है बिटिया ? तुम उदास क्यों हो ? दिन प्रतिदिन तुम्हारा शरीर क्यों कमजोर होता जा रहा है ? वहाँ खाने को ठीक से नहीं मिलता क्या ? तुमको कोई ससुराल में तकलीफ तो नहीं ? तुम्हे सास-ससुर परेशान तो नहीं कर रहे हैं ? 
"नहीं मम्मी ऐसी कोई बात नहीं है, सास-ससुर तो देव तुल्य हैं |"
"ओह ! तो तुम्हारी गोद अभी तक नहीं भरी * इसलिए उदास हो |"
सुमन कुछ न बोल सकी लेकिन उसके आँसू बहुत कुछ कहने में सक्षम थें | 
"बिटिया तुम बिलकुल चिंता नहीं करों, सब ठीक हो जायेगा | मैं आज ही तुम्हारें पापा से कहती हूँ कि वो शहर के बड़े डाक्टर से तुमको दिखा दें |"
"डाक्टर क्या करेगा मम्मी, हो सके तो पापा से कह दो कि, बन्दूक के बल पर मेरी गोद भी भरवा दें |"
*गोद भरी होना  = संतानवती होना 

Views: 2687

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2012 at 1:08pm

//प्रेम के हस्ताक्षर के बिना रिश्तों का कोई भी चेक बेमानी है और कभी भी भुनाया नहीं जा सकता//

आहा !! लघु कथा को आपने निचोड़ कर एक पक्ति में समेट दिया है भाई राज नवद्वी जी, आप जैसे पाठकों की प्रतिक्रिया से लेखन सफल लगने लगता है आदरणीय | बहुत बहुत आभार इस उत्साहवर्धन हेतु |

Comment by राज़ नवादवी on October 26, 2012 at 1:01pm

बहुत खूब, कहानी की पराकाष्ठा ने कहानी के मर्म को जैसे सातवें आसमान पे पहुंचा दिया हो- "डाक्टर क्या करेगा मम्मी, हो सके तो पापा से कह दो कि, बन्दूक के बल पर मेरी गोद भी भरवा दें |"

प्रेम के हस्ताक्षर के बिना रिश्तों का कोई भी चेक बेमानी है और कभी भी भुनाया नहीं जा सकता! 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2012 at 11:18am

आदरणीय अनिल चौधरी जी, लघुकथा के माध्यम से जो सन्देश मैं देना चाहता हूँ वो आप तक पहुँच रहा है यह मेरे लिए उत्साहित करने वाला है, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार | रही बात भुक्तभोगी की तो भाई जी यह इंजिनियर "बागी" है या तो इस पार या उस पार :-)

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 26, 2012 at 11:16am

धन्यवाद आदरणीय बागी जी !


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2012 at 11:13am

आदरणीया विनीता शुक्ला जी, आपके द्वारा सराहना पा कर मैं बहुत ही गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ, आभार आपका |

Comment by Anil chaudhary "sameer" on October 26, 2012 at 11:13am

गणेश जी सादर नमस्कार,

आपने भारत के कुछ पूर्वी क्षेत्रों में होने वाले पकडुआ विवाह पर लेख लिख कर उसकी कुछ बुराइयों को उजागर किया है, वास्तव में जोर-ज़बरदस्ती के सभी कार्यों में बहुत सी बुराइयां होती हैं! आपने रवि के इंजिनिअर बनने की घटना को भी अपनी लघु कथा में जोड़ा है, जिससे मुझे इस बात का शक हो रहा है कि कहीं आपभी पकडुआ विवाह के भुक्तभोगी तो नहीं.......खैर, सबसे बड़ी बात जो इस लेख के माध्यम से आपने बताने का सफल प्रयास किया है वह है उस लड़की के जीवन की बर्बादी जिसकी ख़ुशी के लिए उसके घर वाले उसका विवाह कराते हैं!
विचारात्मक लेख पर आपको बधाई

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2012 at 11:12am

आदरणीय भाई सौरभ पाण्डेय जी, लघु कथा के विषय को और विस्तृत करने और सनातनी विवाहों के वर्गीकरण को बताने हेतु बहुत बहुत आभार | 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2012 at 11:09am

लघु कथा को आशीर्वाद देने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई अम्बरीश जी, आप का कहना सही है की ऐसी कृत्यों को कतई स्वीकृति नहीं देना चाहिए |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2012 at 11:08am

सराहना हेतु आभार भाई पियूष द्विवेदी जी, इस विषय पर बनी फिल्म मैंने नहीं देखी है |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 26, 2012 at 11:04am

आदरणीय प्रधान संपदाक श्री योगराज प्रभाकर जी, आपके द्वारा लघुकथा को सराहा जाना पुरस्कार सदृश है,लघुकथा विधा में जो कुछ भी मैं रच पाता हूँ वो सब आप ही का देन है, आपकी लघुकथाओं को पढ़ पढ़ कर और अपनी लघुकथाओं पर आपके द्वारा प्रदत्त सुधारात्मक टिप्पणियों ने मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा सदैव दी है, बहुत बहुत आभार आपका |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service