चन्द्रबदन!
तेरे कपोल पे तेरे नैनों का नीर
लागे जैसे सीप में मोती
शशी से भी तू सुन्दर लागे
जब ओढ़ चुनर तू है सोती
झरने सी तू चंचल है
सुन्दरता से भी सुन्दर है
सुगंध तेरी जैसे कोई संदल
चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन…
तेरे केशों में वृक्षों सी शीतलता
अधर में मदिरा सी मादकता
कमर समुद्र सी हिचकोले खाए
घूंघट में तू छुईमुई सी लजाये
वाणी, वीणा से भी मधुर
संगमरमर सा तेरा हर अंग है
हल्के हैं तेरे रंग के आगे
धरती पे जितने भी रंग हैं
तेज है तुझमें ईश्वर सा
है तुझे मेरा ये नमन
चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन…
तू ही सांझ, तू ही मेरा भोर है
छवि तेरी हर दिशा में हर ओर है
गंगा से अधिक तू पवित्र है
तू ही कविता भी तू ही मेरा चित्र है
तू ही धन है मेरे लिए
तू ही मेरा उपहार है
तू अमूल्य है मेरे लिए
तेरे आगे सब बेकार है
खो ना जाए तू कहीं
आ कर लूं मैं तेरा जतन
चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन
आ मैं तेरा आलिंगन कर लूं
प्रेम से तुझको बाँहों में भर लूं
अधर से अधर को टकराऊँ
तुझमें ही मैं सिमटा जाऊं
प्रेम का रस भी तू
तू ही प्रेम का गीत है
तू ही सुगंध है प्रेम का
तू ही प्रेम संगीत है
अब नहीं है संयम मुझमें
आ कर ले तू मुझसे मिलन
चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन…
रणवीर प्रताप सिंह
Comment
@Er. Ganesh Jee "Bagi" dhnyawaad
श्रींगार रस और अलंकर का संगम, रचना को एक अलग उचाई पर ले जाता है, इस बेहतरीन रचना पर बहुत बहुत बधाई |
@ manoj kumar chouhan shukriya
BAHUT HI ACHHI ABHIVYAKTI
@ PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA बहुत धन्यवाद आपका, बस आपलोगों का आशीर्वाद इसी तरह से मिलता रहा तो और भी बेहतर लिखता रहूँगा.
आ मैं तेरा आलिंगन कर लूं
प्रेम से तुझको बाँहों में भर लूं
अधर से अधर को टकराऊँ
तुझमें ही मैं सिमटा जाऊं
प्रेम का रस भी तू
तू ही प्रेम का गीत है
तू ही सुगंध है प्रेम का
तू ही प्रेम संगीत है
अब नहीं है संयम मुझमें
आ कर ले तू मुझसे मिलन
चन्द्रबदन, चन्द्रबदन, हय तेरा चन्द्रबदन…
आदरणीय रणवीर जी सादर
मैं लिखना भी चाहूँ तो लिख नहीं सकता
आपने बहुत बढ़िया लिख पढ़ कर मन प्रसन्न हुआ.
बधाई.
रणवीर प्रताप सिंह सरीके आशिक
आह भरते देख केशों में वृक्षों सी शीतलता
झूमते देख अधर में मदिरा सी मादकता ।
बधाई उनको जो ऐसा भान हुआ
ऐसा अहसास हुआ, ऐसा भाव मिला
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