अजब सा शोर है…
मंदिर की घंटियों में भी
मस्ज़िद की अजानों में
मुझको रब नहीं दीखता
धर्म के इन दुकानों में
दिल में बचैनीं हैं...
क्या ख़ाक मिले सुकूं
गीता में कुरानों में
आब हूँ हवा में मिल जाऊँगा
मुझे ना दफनाना तुम
ना जलाना शमशानों में
नहीं जाता किसी दर पर...
खुदा जो है तो मुझसे मिले
कभी मेरे मकानों में
मैं मंदिर में बैठ के पियूँगा
वो तो हर जगह है
पैमानों में मयखानों में
उसे क्या ढूंढते हो तुम…
ज़िन्दगी में ज़मानों में
खुदा तुममें ही रहता है
तेरी झोपड़ियों में भी
और तेरे आशियानें में
रणवीर प्रताप सिंह
Comment
@Rajesh Kumar Jha मैं आपके विचारों से सहमत हूँ
@ PHOOL SINGH बहुत बहुत धन्यवाद
@ Saurabh Pandey बहुत बहुत धन्यवाद
सनातन तथ्य की पुनर्प्रस्तुति कितना संतुष्टि देती है ! .. बधाई.. .
वो तो हर जगह है पैमानों में मयखानों में
रणवीर प्रताप सिंह नमस्कार
वाह कमाल की रचना के लिए बधाई स्वीकारे....
फूल सिंह
ईश्वर सर्वव्याप्त हैं, उन्हें ढूंढना नहीं होता । आपकी रचना के भाव से सहमत हूं । यहां एक विरोधाभास है 'वो तो हर जगह है' और उससे पहले 'खुदा जो है तो मुझसे मिले' , अर्थ यह कि बेचैनी जब बढ़ती है ईश्वर तिरोहित हो जाते हैं लेकिन संयत होते ही मन मान लेता है कि वो तो हर जगह है । ठीक यही तो हमारे साथ भी होता है, उद्विग्न होने पर हर विश्वास टूटने लगते हैं
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