चुन चुन के ख्वाब मेरे जलाया दोस्तों
खूँ में उसने आज ये क्या मिलाया दोस्तों
रब से मिलती रही औ घूँट भरती रही
जहर उसने ज्यों प्याले से पिलाया दोस्तों
चाहत घर की रही और मकाँ मिल गया
कैसा किस्मत ने देखो गुल खिलाया दोस्तों
जिस्म अपना रहा औ रूह उसकी मिली
सब कुछ उसकी लगन में है भुलाया दोस्तों
पीर जमती रही औ पर्वत बनता रहा
आंसुओं की तपन ने ना पिघलाया दोस्तों
खुद ही रख दूँ मैं लकड़ी चिता पर मेरी
मेरी जाँ ने मुझे कितना रुलाया दोस्तों
आँखें बंद हो मेरी और मैं पाऊं उसे
जिसकी मुरली ने मुझको है बुलाया दोस्तों
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Comment
आदरणीय गणेश जी आपको यह रचना पसंद आई आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार
अच्छी रचना , सुन्दर भाव , बधाई आदरणीया |
योगी सारस्वत जी तारीफ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
चाहत घर की रही और मकाँ मिल गया
कैसा किस्मत ने देखो गुल खिलाया दोस्तों
जिस्म अपना रहा औ रूह उसकी मिली
सब कुछ उसकी लगन में है भुलाया दोस्तों
बहुत खूब , सुन्दर अल्फ़ाज़
हार्दिक आभार शिखा कौशिक जी
खुद ही रख दूँ मैं लकड़ी चिता पर मेरी
मेरी जाँ ने मुझे कितना रुलाया दोस्तों
बहुत खूब .बधाई सारगर्भित रचना हेतु राजेश जी .
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी ह्रदय से आभारी हूँ
नादिर खान जी आपकी प्रशंसा हेतु दिल से शुक्रिया
राजेश कुमार झा जी आपको ये रचना पसंद आई ह्रदय से आभारी हूँ
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