लेकर तिनका चौंच में ,चिड़िया तू कित जाय
नीड महल का छोड़ के , घर किस देश बसाय
घर किस देश बसाय ,सभी सुख साधन छोड़े
ऊँची चढ़ती बेल , धरा पे वापस मोड़े
देख बिगड़ते बाल, माथ मेरा है ठनका
जाती अपने गाँव , चौंच में लेकर तिनका
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(अपने एक ख़याल के ऊपर बनाई यह कुंडली )
चोँच में तिनका ले जाती हुई चिड़िया से पूछा अब क्यों घर बदल रही हो तुम तो उस महल के रोशनदान में कितनी शानो शौकत से रहती हो तो वो बोली वहां मेरे बच्चे बिगड़ रहे हैं अपनी औकात भूल रहे हैं!!
Comment
राजेश कुमारी जी सादर नमस्कार! कुंडली के माध्यम से आपने इतने विस्तृत और मार्मिक भाव को बड़ी सहजता से बाँधा है जो काबिले तारीफ है दिली मुबारक बाद कुबूल करें !
अशोक कुमार रक्ताले जी आपको कुंडलिया पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ
आदरेया राजेश कुमारी जी
सादर, बहुत सुन्दर कुंडलिया एक दम मार्मिक भाव और अपनेपन की मिठास. आपने इस ख़याल को तो बहुत ही सुन्दर छंद में ढाला है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आपको कुंडली पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ
हृदय भाव को सुगढ़ता से छंदबद्ध करने के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया राजेश कुमारीजी.
सादर
आदरणीय सौरभ जी के साथ और लोगों ने भी ये इच्छा प्रकट की थी की इन खयालो को छंद बद्ध करके देखूं सो चेष्टा की बाकी पर भी प्रयास करुँगी
प्रिय प्राची जी आपको कुंडली में परिवर्तित मेरा ख्याल पसंद आया बस मुझे और क्या चाहिए हार्दिक आभार आपका
एक ख़याल को छंद में ढालने से गज़ब का भाव और प्रवाह उमढ रहा है. बहुत सुन्दर कुण्डलिया आदरणीया राजेश जी
हार्दिक बधाई इन भावों पर और इस सुन्दर प्रस्तुति पर
मोहिनी जी आप ने सही कहा हम माता पिताओं को ही बच्चों के प्रति सचेत रहना है उनमे अच्छे संस्कार भरने हैं झूठे दिखावे की जिन्दगी से दूर रखना है हार्दिक आभार मेरी कुंडलियाँ की इतनी सुन्दर समीक्षा के लिए
बच्चों में संस्कार भरने के लिये शान -ओ शौकत छोड़ वापस लौटना भी पड़े तो अच्छी सोच ही कही जायेगी |बधाई राजेश कुमारी जी गागर में सागर भरने लिये |
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