(1) घर की छत के दो बड़े स्तम्भ गिर चुके हैं देखो छोटे स्तंभों पर कब तक टिकती है छत !!
(2)सबने कहा और तुमने मान लिया एक बार तो कुरेद कर देखते मेरी राख शायद मैं तुमसे कुछ कहती !!
(3)जिंदगी में बहुत दूर तक तैरने पर कोई नाव मिली ,कुछ गर्म धूप कुछ नर्म छाँव मिली !!
(4)अपनों के हस्ताक्षर के साथ जब कोई कविता आँगन से बाहर जायेगी ,तो जरूर नया कोई गुल खिलाएगी!!
(5)चोँच में तिनका ले जाती हुई चिड़िया से पूछा अब क्यों घर बदल रही हो तुम तो उस महल के रोशनदान में कितनी शानो शौकत से रहती हो तो वो बोली वहां मेरे बच्चे बिगड़ रहे हैं अपनी औकात भूल रहे हैं!!
(6)कदम दर कदम सूरत बदल रही है लगता है अब मैं आगे बढ़ रही हूँ!!
(7)रंग मंच का अंतिम द्रश्य शुरू हो चुका है कुछ ही वक़्त बाकी हैं देखना है पटाक्षेप सुखान्त होगा या दुखांत!!
(8)उन ईंटों ने अब दीवार का साथ छोड़ दिया शायद उसकी जर्जरता उन्हें रास नहीं आई
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Comment
आदरणीय अशोक रक्ताले जी सही कहा जीवन भी सर्कस के शो के जैसा ही तो है हर कोई किरदार अपना रोल अदा कर रहा है हार्दिक आभार आपका
सर्कस! हाँ बाबू ये सर्कस है शो तीन घंटे का. ख्यालों कि बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए सादर बधाई स्वीकारें आद. राजेश कुमारी जी.
आदरणीय प्रदीप कुमार कुशवाह जी इन ख्यालों में आपको अपने ख्यालों का प्रतिबिम्ब नजर आया ये मेरे लेखन की खुशनसीबी है हार्दिक आभार आपका
आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर
आपके ख्याल से नही मेरे ख्याल अलग
मैं खामोश रहा आप बयां कर गयीं
बधाई.
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी बहुत बहुत हार्दिक आभार आपका
बहुत उम्दा लगे जो मन में आये आपके सभी ख़याल जो बधाई आपको राजेश कुमारीजी खो जाती ख्यालों में जो
आदरणीय रविकर भाई प्रतिक्रिया स्वरुप आपके दोहों की क्या तारीफ करूँ शब्द ही नहीं मेरे पास बहुत बहुत हार्दिक आभार सच में आप दोहों के जादूगर हैं
आदरणीय राजेश दी-
एक कोशिश की है-
सादर ।।
बाबा बापू चल बसे, बसे अनोखे पूत ।
संस्कार की छत ढहे, अजब गजब करतूत ।।
चिंगारी भड़का गई, जली बुझी दिल-आग।
जमी समय की राख है, मत कुरेद कर भाग ।।
जल-धारा अनुकूल पा, चले जिंदगी नाव ।
धूप-छाँव लू कँपकपी, मिलते गए पड़ाव ।।
दिल से निकली बात जब, जाए ज्यादा दूर ।
मचे तहलका जगत में, नव-गुल खिले जरूर ।
महलों में बिगड़ें बड़े, बच्चों की क्या बात ।
नया घोसला ले बना, मार महल को लात ।
बच्ची बहिनी बन बुआ, मौसी बीबी माय ।
नए नए नित नाम दे, नित सूरत बदलाय ।।
पटाक्षेप होने चला, सुख दुःख का यह खेल ।
करवट देखो ऊंट की, मत कर ठेलमठेल ।।
चूहे पहले भागते, डूबे अगर जहाज ।
गिरती देख दिवार को, ईंट करे नहिं लाज ।
जबरदस्त आदरेया ।।
महलों में बिगड़ें बड़े, बच्चों की क्या बात ।
नया घोसला ले बना, मार महल को लात ।
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आप सही कह रहे हैं । आपको मेरे ख़याल पसंद आये बहुत बहुत हार्दिक आभार ।
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