For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(1) घर की छत के दो बड़े स्तम्भ गिर चुके हैं देखो छोटे स्तंभों पर कब तक टिकती है छत !! 

(2)सबने कहा और तुमने मान लिया एक बार तो कुरेद कर देखते मेरी राख शायद मैं तुमसे कुछ कहती !!

(3)जिंदगी में बहुत दूर तक तैरने पर कोई नाव  मिली ,कुछ गर्म धूप  कुछ नर्म  छाँव  मिली !!

(4)अपनों के हस्ताक्षर के साथ जब कोई कविता आँगन से बाहर जायेगी ,तो जरूर नया कोई गुल खिलाएगी!!

(5)चोँच में तिनका ले जाती हुई चिड़िया से पूछा अब क्यों घर बदल रही हो तुम तो उस महल के रोशनदान में कितनी शानो शौकत से रहती हो तो वो बोली वहां मेरे बच्चे बिगड़ रहे हैं अपनी औकात  भूल रहे हैं!!

(6)कदम दर कदम सूरत बदल रही है लगता है अब  मैं आगे बढ़ रही हूँ!!

(7)रंग मंच का अंतिम द्रश्य  शुरू हो चुका  है कुछ ही वक़्त  बाकी हैं देखना है पटाक्षेप सुखान्त होगा या दुखांत!!  

(8)उन ईंटों ने अब दीवार का साथ छोड़ दिया शायद उसकी जर्जरता उन्हें रास  नहीं आई 

***************************************************************************** 

    

Views: 747

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 19, 2012 at 7:38pm

आदरणीय अशोक रक्ताले जी सही कहा जीवन भी सर्कस के शो के जैसा ही तो है हर कोई किरदार अपना रोल अदा कर रहा है हार्दिक आभार आपका 

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 19, 2012 at 7:26pm

सर्कस! हाँ बाबू ये सर्कस है शो तीन घंटे का. ख्यालों कि बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए सादर बधाई स्वीकारें आद. राजेश कुमारी जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 17, 2012 at 3:11pm

आदरणीय प्रदीप कुमार कुशवाह जी इन ख्यालों में आपको अपने ख्यालों का प्रतिबिम्ब नजर आया ये मेरे लेखन की खुशनसीबी है हार्दिक आभार आपका 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 3:03pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर 

आपके ख्याल से नही मेरे ख्याल अलग 

मैं खामोश रहा आप बयां कर गयीं 

बधाई. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 17, 2012 at 9:43am

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी बहुत बहुत हार्दिक आभार आपका 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 17, 2012 at 9:32am

बहुत उम्दा लगे जो मन में आये आपके सभी ख़याल जो                                                                                             बधाई आपको राजेश कुमारीजी खो जाती ख्यालों में जो 

बधाई रविकर को भी जिसने किया ख़याल पर बबाल, 
पद्म में ढाल इन खयालो को रविकर ने कर दिया कमाल  

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 17, 2012 at 9:02am

आदरणीय रविकर भाई प्रतिक्रिया स्वरुप आपके दोहों की क्या तारीफ करूँ शब्द ही नहीं मेरे पास बहुत बहुत हार्दिक आभार सच में आप दोहों के जादूगर हैं 

Comment by रविकर on November 17, 2012 at 6:54am

आदरणीय राजेश दी-

एक कोशिश की है-

सादर ।।

बाबा बापू चल बसे, बसे अनोखे पूत ।

संस्कार की छत ढहे, अजब गजब करतूत ।।

चिंगारी भड़का गई, जली बुझी दिल-आग।

जमी समय की राख है, मत कुरेद कर भाग ।।

जल-धारा अनुकूल पा, चले जिंदगी नाव ।

धूप-छाँव लू कँपकपी, मिलते गए पड़ाव ।।

दिल से निकली बात जब, जाए ज्यादा दूर ।

मचे तहलका जगत में, नव-गुल खिले जरूर ।

महलों में बिगड़ें बड़े, बच्चों की क्या बात ।

नया घोसला ले बना, मार महल को लात ।

बच्ची बहिनी बन बुआ, मौसी बीबी माय ।
नए नए नित नाम दे, नित सूरत बदलाय ।।

पटाक्षेप होने चला, सुख दुःख का यह खेल ।

करवट देखो ऊंट की, मत कर ठेलमठेल ।।

चूहे पहले भागते, डूबे अगर जहाज ।

गिरती देख दिवार को, ईंट करे नहिं लाज ।

Comment by रविकर on November 17, 2012 at 6:18am

जबरदस्त आदरेया ।।

महलों में बिगड़ें बड़े, बच्चों की क्या बात ।

नया घोसला ले बना, मार महल को लात ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 16, 2012 at 8:35pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी  आप   सही कह रहे हैं । आपको मेरे ख़याल पसंद आये बहुत बहुत हार्दिक आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service