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दोहा विधा से सम्बन्धित पोस्ट आप यदि पढें तो याद आयेगा कि छंद के द्वितीय और चतुर्थ चरण के अंत की तरह प्रथम और तृतीय चरण के अंत का नियम भी है. यानि, उपरोक्त चरणों का अंत १२ या १११ यानि लघु गुरु या लघ लघु लघु से होता है. तब ’फार्म हाउस में होते’ कैसे संभव हो सकता है ?
दूसरे, दोहा का प्रारम्भ १२१ से नहीं किया जाता.
सादर
हार्दिक धन्यवाद डॉ प्राची सिंह जी, फार्म हाउस बना रहे लिखना चाहता था जो टंकण त्रुटी वश बन रहे हो गया । पर आपकी परखी नगाहों ने पकड़ लिया । अगली पंक्ति में फार्म हाउस में होते,कैसे कैसे काम, करने से ठीक हो जाएगा । सुझावों के लिए हार्दिक आभार स्वीकारे ।
फार्म हाउस में हो रहे..यहाँ भी मात्रा १४ हो रही है आदरणीय लक्ष्मण जी
वाह, ’सीखने-सिखाने’ की परंपरा का सुन्दर निर्वाह हुआ है. आदरणीय लक्ष्मण जी, दोहों पर आपको यथासम्भव टिप्स मिलते रहते हैं. आप उन टिप्स को सदा ध्यान में रखें. और रचना-कर्म के समय उनका प्रयोग करें. मात्राओं की गणना के साथ-साथ छंद से सम्बन्धित कुछ नियम जानने भी आवश्यक हैं.
आपके कथ्य उचित साधन (शिल्प) चाहते हैं. वह आप ही दे सकते हैं.
सादर
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी,
आपकी सतत संलग्नता और मात्रा गणना पर आपका प्रयास इस दोहावली में नज़र आ रहा है .
इस प्रयास में मात्रिक गणना सधी हुयी है, सिर्फ एक जगह ही विषम चरण में मात्रा १२ है, इस हेतु आपको बहुत बहुत बधाई.
काकी आई शहर से, सुनो शहर का हाल,
फ़ार्म हाउस बन रहे=१२ , धनवानों की चाल ।
धनवानों की चाल है, खेती का क्या काम
बचजाये बस आयकर,ये ही उनका काम ।
फार्म हाउस में हो रहे, कैसे कैसे काम,
नेता बने किसान है, छलक रहे है जाम ।
किसान खेतहीन हुए, जमींदार सब नाथ,
बँट में खेत जोत रहे, घरवाली के साथ ।
घरवाली को साथ ले, खेतो में जुट जाय,
दुपहरी की रोटी भी, छाँव तले ही खाय ।
जनता के इस राज में, बदल गयी तरकीब,
नेता सब मालिक बने, देखा राज अजीब ।
देखा राज अजीब है, नेता माला माल,
जनता अब कंगाल है, षड्यंत्रों का जाल ।
आप अब गेयता को भी साधने का प्रयत्न करें.
हार्दिक शुभकामनाएं .
होंसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार आपका भाई श्री अशोक रक्ताले जी
आदरणीय लड़ीवाला जी
सादर, बहुत सुन्दर भाव युक्त दोहों पर सादर हार्दिक बधाई स्वीकारें.
हार्दिक आभार आपका आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी
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