जल प्रपात
Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी
सादर
आभार.
आदरणीया प्राची जी, सादर
चलिए किसी का मन प्रसन्न हुआ. प्रयास सफल. वर्ना मैं तो तरसता हि रहता हूँ. रचना की गुणवत्ता जानने के लिए.
आभार
आदरणीय लड़ी वाला जी, सादर
साथ चलते रहिये, अंगुली पकड़ मैं भी चल लूँगा.
आभार
आदरणीय चंद्रेश जी, सादर
आभार प्रोत्साहन हेतु.
आदरणीय अशोक जी, सादर
पता नहीं जो कहना छाहता हूँ कह पाया या नहीं.
आभार स्नेह हेतु.
आधुनिकरण की अंधी दौड़ ,दूषित पर्यावरण सांस लेना भी दूभर अशांत मन इंसान जिए तो कैसे आपकी रचना में उभरते भाव सब समझा रहे हैं बहुत अच्छी समसामयिक रचना बहुत बहुत बधाई प्रदीप कुशवाह जी
कोलाहल में फंसा मन, सोचने समझने की क्षमता को खोता , लिप्साग्रस्त एक अंधी दौड़ में दौड़ता जाता... शांति मिलना मुश्किल है, अगर मिल भी गयी तो बरकरार कैसे रहेगी, ...और अंत तो वाह!!!.... हत्या का दोष मैं क्यों लूं .
हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर, मन खुश हो गया ये रचना पढ़ कर. सादर.
बहुत खूब प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी,
कैसे सुने
आदरणीय प्रदीप जी
सादर, बहुत सुन्दर भाव व्यक्त करती रचना के लिए बधाई स्वीकारें. सच है हम भागती दौडती जींदगी में मानवता को कहीं पीछे छोड़ आये हैं. सादर.
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