तीन दुर्मिल सवैया छंद :-
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(1)
चित चॊर चकॊर मरॊर दई, झकझॊर दई पँसुरी पँसुरी,
कस माखनचॊर गही बहियां, चटकाइ दई अँगुरी अँगुरी,
फिर फॊरि दई छलिया गगरी,चिचुवाइ दई सगरी लँगुरी,
चुपचाप खड़ी हिय लाज गड़ी, सब दॆह भई चँगुरी चँगुरी,
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(2)
जरि अंग गयॆ सगरॆ सखि री,नहिं एक जरी हठकै गठरी,
सब बॊल सुहावन हैं बिरथा, कबहूँ न लहैं सुधरैं शठ री,
कवि"राज"कहैं कलिकाल चढ़ा,मन-चाह बढ़ी बहुतै नठरी,
यमराज लिवाय चलॆ जइहैं, रहि जांय धरॆ मुरदा ठठरी,
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(3)
जब तॆ बिटिया बड़वार भई, उड़ि नींद गई इन नैनन तॆ,
घर-वार मिलॆ परिवार मिलॆ,दिलदार मिलॆ वर ना मन तॆ,
कहुं चैन नहीं हमरॆ मन कॊ,बतियाइ लगी उठि रातन तॆ,
करतार हमार गुहार सुना, हम दीन हई बहुतै धन तॆ,
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Comment
Ashok Kumar Raktale आदरणीय,,,प्रणाम करता हूं आपको,,,आपकी प्रतिक्रिया से ऊर्जा मिली है,,,
आदरणीय राज बुन्देली जी
सादर, तीनो ही दुर्मिल सवैया मन को मुग्ध कर रहे हैं. बधाई स्वीकारें.
Saurabh Pandey आदरणीय,,,प्रणाम करता हूं आपको,,,आपकी प्रतिक्रिया से ऊर्जा मिली है,,,,,सच मानिये यह मेरा प्रथम प्रयास था जो आप सबके चरणॊ में समर्पित कर दिया है,,,,,,,,,,,अभी सीखने की शुरुआत है,,,,,,,,,,,,सादर नमन आपको,,,,,,,,,,,,
छंद - 1) संयोग शृंगार का सुन्दर वर्णन हुआ है, राज साहब. बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें.
छंद 2) एक सांसारिक का आत्ममंथन उचित लगा. हार्दिक बधाई.
छंद 3) विवाह योग्य बेटी के साधनहीन किन्तु संवेदनशील पिता की मनोदशा का चित्रण करता छंद सुन्दर बन पड़ा है. कहुं चैन नहीं हमरॆ मन कॊ,बतियाइ लगी उठि रातन तॆ, इस पद में पिता-भाव की निरुपाय दशा निखर कर आयी है.
आपके इस प्रयास को मेरी बधाई.
rajesh kumari ,,,,, जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,
राज बुन्देली जी इन छंदों की जितनी तारीफ करें कम होगी क्या लय ,क्या प्रवाह क्या शब्द सब जबरदस्त वाह वाह
योगराज प्रभाकर जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,
कवि राज बुन्देली जी वाह !! एक से बढ़ कर एक छंद कहे हैं, पढ़ कर मन आनंदित हो उठा। मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें मान्यवर।
वीनस केसरी जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,
arun kumar nigam जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,
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