For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रेत में जैसे निशां खो गए

रेत में जैसे निशां खो गए

हमसे तुम ऐसे जुदा हो गए

 

रात आँखें ताकती ही रहीं

मेहमां जाने कहाँ सो गए

 

सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें

छोड़कर मझधार में खो गए

 

बोझ लेकर आपके पाप का

कांधे  में अपने उसे ढो गए

 

मिलने का वादा किया था मगर

हिचकियाँ देकर वो गुम हो गए

 

कौन आया है सदा के लिए

हम गए जो आज कल वो गए

 

Views: 526

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by rajluxmi sharma on December 10, 2012 at 10:25pm

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है...हार्दिक बधाई

Comment by नादिर ख़ान on December 7, 2012 at 11:27am

बहुत शुक्रिया अदरणीय प्राची जी 

बहुत  आभार ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 7, 2012 at 10:21am

आदरणीय नादिर खान जी,

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने.

मतला और पहला शेर ख़ास तौर पर बहुत पसंद आये....हार्दिक बधाई स्वीकार करे.

Comment by नादिर ख़ान on December 6, 2012 at 10:11pm

chandresh ji बहुत  शुक्रिया, आपने रचना को सराहा 

Comment by नादिर ख़ान on December 6, 2012 at 9:45pm

अदरणीय सौरभ जी सुझाओ के लिए बहुत शुक्रिया इसी तरह का मार्गदर्शन बनाये रखें ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 6, 2012 at 7:34pm

यहाँ पर सो इसलिये लिया है कि, जिन्हे रहनुमाई सौपी थी वो सो गए  हमें मझधार मे छोड़ कर... वैसे इस सो गए  और खो गए ने हमें भी 2 दिन परेशान किया था

नादिर भाई, आपकी बात भी अपनी जगह सही है. मैं भी इस पर यथोचित सोचा कि सो गये  रहने दूँ या खो गये समीचीन होगा.

पूरा शेर यों है -

सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें
छोड़कर मझधार में सो गए ..........   एकबारगी पढने पर लगता है कि जिन्हें रहनुमाई सौंपी गयी थी वे सौंपने वालों को छोड़ कर  खुद मझधार में  जाकर सो गये.  जबकि यह अर्थ बिल्कुल नहीं है. इसी दुविधा को खत्म करने के लिए मेरा खो गये सुझाव था, जिसके अनुसार अब जिन्हें रहनुमाई सौंपी गयी थी वे सौंपने वालों को मझधार में छोड़कर खो गये या वे खुद ही मझधार में कहीं खो गये, चाहे जो समझा जाय, अर्थ दोनों ढंग में अपने हिसाब से वाज़िब निकलेगा. वैसे भाईसाहब, शेर आपका है.  :-))

शुभेच्छाएँ

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 6, 2012 at 6:52pm

बहुत खूब नादिर खान जी | बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है |

 

सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें

छोड़कर मझदार में सो गए

 

बोझ लेकर आपके पाप का

कांधे  में अपने उसे ढो गए

क्या बात है जनाब ||

Comment by नादिर ख़ान on December 6, 2012 at 4:18pm

महिमा जी  आपका बहुत शुक्रिया आपने रचना को पसंद किया ।

Comment by नादिर ख़ान on December 6, 2012 at 4:17pm

अदरणीय सौरभ जी बहुत शुक्रिया आपने कोशिश को सराहा और आपके मार्गदर्शन के लिए बहुत आभार

हमने मझधार की त्रुटि सुधार ली है ।

 सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें
छोड़कर मझदार में सो गए  

यहाँ पर सो इसलिये लिया है कि, जिन्हे रहनुमाई सौपी थी वो सो गए 

हमें मझधार मे छोड़ कर... वैसे इस सो गए  और खो गए ने हमें भी 2 दिन परेशान किया था ।

कृपया मार्गदर्शन दें 

Comment by MAHIMA SHREE on December 6, 2012 at 3:39pm

कौन आया है सदा के लिए

हम गए जो आज कल वो गए....

बहुत खूब ... आदरणीय बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. अजय जी.आपकी दाद से हौसला बढ़ा है.  उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो…"
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"बहुत उत्तम दोहे हुए हैं लक्ष्मण भाई।। प्रदत्त चित्र के आधार में छिपे विभिन्न भावों को अच्छा छाँदसिक…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
23 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service