रेत में जैसे निशां खो गए
हमसे तुम ऐसे जुदा हो गए
रात आँखें ताकती ही रहीं
मेहमां जाने कहाँ सो गए
सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें
छोड़कर मझधार में खो गए
बोझ लेकर आपके पाप का
कांधे में अपने उसे ढो गए
मिलने का वादा किया था मगर
हिचकियाँ देकर वो गुम हो गए
कौन आया है सदा के लिए
हम गए जो आज कल वो गए
Comment
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है...हार्दिक बधाई
बहुत शुक्रिया अदरणीय प्राची जी
बहुत आभार ..
आदरणीय नादिर खान जी,
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने.
मतला और पहला शेर ख़ास तौर पर बहुत पसंद आये....हार्दिक बधाई स्वीकार करे.
chandresh ji बहुत शुक्रिया, आपने रचना को सराहा
अदरणीय सौरभ जी सुझाओ के लिए बहुत शुक्रिया इसी तरह का मार्गदर्शन बनाये रखें ।
यहाँ पर सो इसलिये लिया है कि, जिन्हे रहनुमाई सौपी थी वो सो गए हमें मझधार मे छोड़ कर... वैसे इस सो गए और खो गए ने हमें भी 2 दिन परेशान किया था
नादिर भाई, आपकी बात भी अपनी जगह सही है. मैं भी इस पर यथोचित सोचा कि सो गये रहने दूँ या खो गये समीचीन होगा.
पूरा शेर यों है -
सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें
छोड़कर मझधार में सो गए .......... एकबारगी पढने पर लगता है कि जिन्हें रहनुमाई सौंपी गयी थी वे सौंपने वालों को छोड़ कर खुद मझधार में जाकर सो गये. जबकि यह अर्थ बिल्कुल नहीं है. इसी दुविधा को खत्म करने के लिए मेरा खो गये सुझाव था, जिसके अनुसार अब जिन्हें रहनुमाई सौंपी गयी थी वे सौंपने वालों को मझधार में छोड़कर खो गये या वे खुद ही मझधार में कहीं खो गये, चाहे जो समझा जाय, अर्थ दोनों ढंग में अपने हिसाब से वाज़िब निकलेगा. वैसे भाईसाहब, शेर आपका है. :-))
शुभेच्छाएँ
बहुत खूब नादिर खान जी | बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है |
सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें
छोड़कर मझदार में सो गए
बोझ लेकर आपके पाप का
कांधे में अपने उसे ढो गए
क्या बात है जनाब ||
महिमा जी आपका बहुत शुक्रिया आपने रचना को पसंद किया ।
अदरणीय सौरभ जी बहुत शुक्रिया आपने कोशिश को सराहा और आपके मार्गदर्शन के लिए बहुत आभार
हमने मझधार की त्रुटि सुधार ली है ।
सौंप दी थी रहनुमाई जिन्हें
छोड़कर मझदार में सो गए
यहाँ पर सो इसलिये लिया है कि, जिन्हे रहनुमाई सौपी थी वो सो गए
हमें मझधार मे छोड़ कर... वैसे इस सो गए और खो गए ने हमें भी 2 दिन परेशान किया था ।
कृपया मार्गदर्शन दें
कौन आया है सदा के लिए
हम गए जो आज कल वो गए....
बहुत खूब ... आदरणीय बधाई स्वीकार करें
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