चमन देखा हे
हमने दुनिया का चमन देखा हे
मुश्किल में अपना बतन देखा
बक्त की मार से हो के तबाह
इन्सान को नगे बदन देखा हे
मतलबी यारी निभाने को
दोस्त दुशमन का मिलन देखा हे
देश की सम्पदा मिटाने को
चोरी से होते खनन देखा हे
हर हुनर से यूँ धन कमाने को
लोगो को करते जतन देखा हे
औरो के लिए मोम सा पिघलते
जीवन को हबन करते देखा हे
सही गलत का भेद मिटाते.
हमने पेसो का बजन देखा हे
डॉ अजय आहत
Comment
अच्छा लिखा है बधाई
सही गलत का भेद मिटाते.
हमने पेसो का बजन देखा हे
क्या खूब कही है आपने आज के सन्दर्भ में आपकी कवितायें अपना उद्देश्य पूरा करती दीखती हैं! बधाई!
सुन्दर प्रयास है अजय साहिब
रचना ग़ज़ल विधा के बहुत करीब है कुछ मूलभूत बातों का ध्यान रखें तो इसे ग़ज़ल होते देर नहीं लगेगी ...
शुभकामनाएं
Pradeep Sir ji Dhnyabaad
सही गलत का भेद मिटाते.
हमने पेसो का बजन देखा हे
बधाई सर जी.
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