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स्वप्न तिरोहित मन की बातें

स्वप्न तिरोहित मेरी आँखें ,
क्या तुमको अच्छी लगती हैं?
कुछ डोरे भूले भटके से ,
नयनो में तिरते रहते हैं.

कुछ पलाश के फूल रखे हैं
सुर्ख लाल गहरे से रंग के
अग्निशिखा की छाया जैसी,
निशा द्वार पर जलते बुझते .

भटको मत अब नयन द्वार पर
भ्रमर भ्रमित से रह जाओगे
निशा भैरवी तान सुनेगी ,
अधर पटल सुन दृग खोलेंगे,

गीले बालों में झरते हैं मोती,
झरने के झिलमिल बूंदों से
धुल जायेंगे नयन के डोरे
स्वप्न की बातें याद करेंगे.

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Comment by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:56pm

suman ji bahut umda likha he badhai

Comment by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 12:28pm

शुक्रिया सर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 15, 2012 at 12:11pm
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति बधाई सुमन मिश्र जी -
सुन्दर भाव संजोये मन में 
नयनों में रेशम से डोरे 
अभिव्यक्ति को पंख लगे है,
अधर पटल गुनगुनाए रे ।

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