सौम्य शांत सी चली थी
निंद्रा से चिर निंद्रा की ओर
उसे निंद्रा से जगाने की कोशिश थी
थी भाग दौड़ !
उम्र भर की मानसिक यातना से
थी आज मुक्ति की ओर अग्रसर ,
अस्पताल के एक कोने में उसका
शरीर था पड़ा एक बिस्तर पर ,
बैठी थी पास ही उसके
उसकी बिटिया मूक दर्शक बनकर ,
रही थी माँ को एकटुक निहार !
और जैसे कह रही हो बारम्बार...
माँ, तुझे न रोकूंगी आज
ले लो मुझसे मुक्ति का उपहार !
अन्वेषा
Comment
Ajay ji, Avinash ji , Sandeep ji , Shailendra ji, Rajesh Kumari ji....abhar...
Bagi ji..satya ghatit hote dekha..bus kagaj pe utar di, man kuchh itna kunthit tha ki shabdo ko sajane ka khayal nahi aaya....agli baar dhyan rakhungi..Naman
बहुत मार्मिक दर्द ही दर्द
संवेदना से ओत प्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया अन्वेषा जी |
बहुत भाव पूर्ण रचना हेतु बधाई आपको आदरणीया
बहुत दर्द है इस रचना में, शिल्प पर कमजोर सी दिखी यह रचना , और भी बेहतर हो सकती थी | बधाई अन्वेषा जी |
माँ, तुझे न रोकूंगी आज
ले लो मुझसे मुक्ति का उपहार !
wah..अन्वेषा..
sorry sambedna
behad marmik aapki sambesna ko pranam karta hu anwesh ji aap me mahus karke sach ke blikul kareeb likhti he badhai
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