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व्यस्त फुटपाथ की तपती फर्श पर ,
तपती धूप की किरणों से ,
जलते शरीर से बेखबर,
मक्खियों की भीड़ से बेअसर ,
फटे-गंदे कपड़ो से लिपटे
भूखे पेट, एक माँ बच्ची के साथ
बेसुध सो रही ...
कही सामाजिक अव्यवस्था तो..
कही नियति ही सही,
पर मनुष्य के कष्ट सहने के शक्ति की
कोई सीमा भी तो नहीं !!! अन्वेषा

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Comment

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Comment by Anwesha Anjushree on December 15, 2012 at 4:13pm

Seema Madam, Vinus kesari ji, Jawahar Lal ji, Arun ji, Ajay Ji ewam Rajesh madam....mujhe behad khushi hai aap logo ne mujhe sweekara hai....bahut pahle ak baar aaye thi yaha...phir ab laut aayi hu :) Asha hai meri kavitayen aapko pasand aayegi...Abhar

Seema Ji, Sourabh ji...mujhe aap ke sujhav pasand hai...par "jhund" ak samanya shabd hai..."bheed" shabd kasht ka anubhav deta hai.......esliye maine uska prayog kiya tha....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2012 at 3:32pm

एक मार्मिक द्रश्य पर  संवेदनात्मक भावों  को शब्दबद्ध  करती क्षणिका सच में माँ की सहनशक्ति की कोई सीमा नहीं बधाई इस क्षणिका पर अन्वेषा जी 

Comment by Dr.Ajay Khare on December 15, 2012 at 1:59pm

Adarniya anwesha ji samjik bismtao ka aapne marmik chitran kiya he besak aap badhai ki hakdar he jo me aapko somp raha hu

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 15, 2012 at 11:21am

बेहद मार्मिक व संवेदनशील रचना मानों हर एक पंक्ति यूँ सामने खड़ी होकर सच बोल रही हों

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 15, 2012 at 7:27am

आदरणीय अन्वेषा जी, सादर अभिवादन!

निश्चित ही एक माँ के सहनशक्ति कोई सीमा नहीं! आपकी सम्वेदना को दर्शाती रचना! बधाई स्वीकारें!

Comment by वीनस केसरी on December 15, 2012 at 3:04am

जैसे रचना सचरित्र सजीव हो उठी हो .....
जैसे ठंढक़ वाली यह आधी रात मई की धूप भरी दोपहर बन गई हो
जैसे कोई औरत संवेदनहीन नज़रों से घूर रही हो
जैसे उसकी नज़र पूछती हो ....

मनुष्य के कष्ट सहने के शक्ति की कोई सीमा भी तो नहीं !!!

Comment by seema agrawal on December 15, 2012 at 12:25am

 एक शब्द चित्र जो कठोर यथार्थ से उपजा है ....आपकी संवेदनशीलता को भी दर्शाता है ....बहुत बहुत बधाई सफल अभिव्यक्ति के लिए अन्वेषा जी 
सौरभ जी की बात से मैं भी सहमत हूँ 

Comment by Anwesha Anjushree on December 14, 2012 at 8:21pm

Saurabh Pandey ji....Prachi Singh Ji..aap dono ka phir se shukriya..Saurabh ji...aapke sujhav sweekar....aur bhawisya me unki pratiksha bhi rahegi...

Chattani Ji...aap ka bhi bahut bahut abhar...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 14, 2012 at 7:41pm

क्षणिका सदृश भाव उमगे और आपने शब्दबद्ध कर लिया. अच्छी अभिव्यक्त.

मक्खियों की भीड़  .. का कौतुक रोचक तो लगा किन्तु मक्खियों के झुंड ही उचित रहता. वैसे यह निजी विचार हैं. कोई दवाब नहीं, न कोई सुझाव.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 14, 2012 at 6:32pm

प्रिय अन्वेषा जी,

आपके संवेदी ह्रदय नें जिस कष्टकारी स्थिति से ग्रस्त एक माँ की सहनशक्ति को शब्द चित्र में उकेरा है, उस संवेदनशीलता के लिए आपको साधुवाद.

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