फुसलाने निकले
हम जिनको समझाने निकले
वो हमसे भी सयाने निकले
अनजाना समझा था जिनको
सब जाने पहचाने निकले
चेहरों पर लेकर खुशी
दर्द को छिपाने निकले
जिनको हमदम मान लिया था
दुश्मन वही पुराने निकले
जब पीने की दिल मे ठानी
बंद सभी मयखाने निकले
स्वांग ग़रीबी का करते थे
उनके घर तहख़ाने निकले
अब चुनाव जब सर पे आया
तो लोंगो को फुसलाने निकले
Dr. Ajay Khare Aahat
Comment
Sabhi atmiyjano ko hosla afjai hetu badhai
बधाई ......
हम जिनको समझाने निकले
वो हमसे भी सयाने निकले
चेहरों पर लेकर खुशी
दर्द को छिपाने निकले...
क्या बात है .. दिल से लिखी गयी गज़ल के लिए बहुत -2 बधाई
बहुत सुन्दर सार्थक ग़ज़ल लिखी है सभी शेर बढ़िया हैं आदरणीय गणेश जी की बात पर गौर करें बहुत बहुत बधाई आपको
एकदम सच्चाई है, वाह बढ़िया पेशकश , बधाई स्वीकारें !
अच्छे भाव लिए हुए गजल पर यह प्रयास बहुत अच्छा बन पडा है... शेष आ भाई गणेश बागी जी ने इंगित किया है...
सादर बधाई स्वीकारें....
ग़ज़ल कहन के लिहाज़ से अच्छी है, वजन पर काम करने की जरुरत है , दाद कुबूल करें आदरणीय |
एकदम सच्चाई है आपकी कविता में। बधाई।
विजय निकोर
वाह अजय जी वाह बढ़िया पेशकश बधाई स्वीकारें
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