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थर्रा गये  मंदिर ,मस्जिद ,गिरिजा घर   

जब  कर्ण  में पड़ी  मासूम की चीत्कार 

सहम गए दरख़्त के सब फूल पत्ते  

बिलख पड़ी हर वर्ण हर वर्ग  की दीवार 

रिक्त हो गए बहते हुए चक्षु  समंदर 

दिलों में  नफरतों के नाग रहे फुफकार

उतर  आये   दैत्य देवों  की भूमि पर 

और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार  

 दर्द के  अलाव में  जल  रहे हैं जिस्म                  

 नाच रही हैवानियत मचा हाहाकार                                                                            

 देख  खतरे में नारियों  का अस्तित्व          

 सर्व नाश भू मंडल पर ले रहा आकार 

*************************************

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 26, 2012 at 12:09pm

वाह प्रिय प्राची आपकी ये द्विपदियाँ दुबारा पढ़ी जितनी भी तारीफ की जाए इनकी वो कम ही होगी ,हर आक्रोशित मन की यही पुकार है हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 26, 2012 at 11:53am

यत्र नार्यस्तु न पूज्यन्ते तत्र भवति सर्वनाशम

सहमत हूँ.

यत्र नार्यस्तु दुर्गत्ये तत्र भवतु विनाशनम....  

ओबीओ महोत्सव अंक २४ में नारी शक्ति पर लिखी गयी कुछ पंक्तियों को यहाँ पुनः लिखने से खुद को रोक नहीं पा रही.

घृष्टतम निकृष्टतम अपमान से हूँ खंडिता /

पुरुष की संकीर्णता से देह दुर्ग में बंधिता //९//

 

पूजिता हूँ मैं युगों से, है यही अवधारणा /

दुर्ग नारी सह रहा पर, क्यों व्यथा-प्रतारणा //१०//

 

श्रवण करती प्रकृति सारी, मेरी इस चीत्कार को /

मेरी पीड़ा ने झंझोरा, प्रकृति के व्यवहार को //११//

 

हृदय क्रंदित रूप की पीड़ा से कम्पित है धरा /

फट उठा ज्वालामुखी, दमिताग्नि से था जो भरा //१२//

 

नयन-अश्रु भाँप देखो, फट उठे बादल कहीं /

चक्रवाती लहरें तूफाँ हैं निगलते तट सभी //१३//

 

टूटते जब ख्वाब मेरे, ग्रह दिशाएँ मोड़ते /

सृजन की धारा पलट, संहार करने दौड़ते //१४//

 *******************************************

यत्र नार्यस्तु न पूज्यन्ते तत्र भवति सर्वनाशम!!!!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 26, 2012 at 11:36am

प्रिय प्राची जी ये हम सब की  पीड़ा है हमें खुद ही इससे निजात पानी है कहते हैं ना यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ,अब कहो यत्र नार्यस्तु न पूज्यन्ते तत्र भवति सर्वनाशम ,लगता है वे  दिन अब दूर नहीं ,आपका हार्दिक आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 26, 2012 at 11:08am

दर्द है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा, लगता है सम्पूर्ण नारी समुदाय अब एक जुट हो कर ही अपने अस्तित्व को सम्हालेगा.

दर्द के  अलाव में  जल  रहे हैं जिस्म                  

 नाच रही हैवानियत मचा हाहाकार                                                                            

 देख  खतरे में नारियों  का अस्तित्व          

 सर्व नाश भू मंडल पर ले रहा आकार ....संवेदना को प्रखरता से शब्दों में ढाला है आदरणीया राजेश जी, हार्दिक बधाई 

कल ही ऐसे प्रस्तर  ह्रदय माता पिता से सामना हुआ, जिन्होंने बेटी जन्मने पर उसका चेहरा नहीं देखा और माँ ने बच्ची को तीन दिन तक दूध भी नहीं पिलाया.

और एक ऐसी माँ से सामना हुआ जो अपनी दूसरी बेटी जन्मने पर बहुत रोई, और अपनी बच्ची को अपनी जेठानी के दो वर्ष के बेटे से बदल लिया.

कैसी विडम्बना है, कैसा आधुनिक समाज है यह, कैसी प्रगतिशीलता है ...

सिर्फ दर्द है, जिसे बयान करने के लिए शब्द भी कम हैं.

नारी को जन्मने ही नहीं दिया जाता, जन ले ले तो भी क्या....उसकी बेबस चीत्कारों से आज मुल्क शर्मसार है..

कृपया ध्यान दे...

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