थर्रा गये मंदिर ,मस्जिद ,गिरिजा घर
जब कर्ण में पड़ी मासूम की चीत्कार
सहम गए दरख़्त के सब फूल पत्ते
बिलख पड़ी हर वर्ण हर वर्ग की दीवार
रिक्त हो गए बहते हुए चक्षु समंदर
दिलों में नफरतों के नाग रहे फुफकार
उतर आये दैत्य देवों की भूमि पर
और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार
दर्द के अलाव में जल रहे हैं जिस्म
नाच रही हैवानियत मचा हाहाकार
देख खतरे में नारियों का अस्तित्व
सर्व नाश भू मंडल पर ले रहा आकार
*************************************
Comment
वाह प्रिय प्राची आपकी ये द्विपदियाँ दुबारा पढ़ी जितनी भी तारीफ की जाए इनकी वो कम ही होगी ,हर आक्रोशित मन की यही पुकार है हार्दिक आभार
यत्र नार्यस्तु न पूज्यन्ते तत्र भवति सर्वनाशम
सहमत हूँ.
यत्र नार्यस्तु दुर्गत्ये तत्र भवतु विनाशनम....
ओबीओ महोत्सव अंक २४ में नारी शक्ति पर लिखी गयी कुछ पंक्तियों को यहाँ पुनः लिखने से खुद को रोक नहीं पा रही.
घृष्टतम निकृष्टतम अपमान से हूँ खंडिता /
पुरुष की संकीर्णता से देह दुर्ग में बंधिता //९//
पूजिता हूँ मैं युगों से, है यही अवधारणा /
दुर्ग नारी सह रहा पर, क्यों व्यथा-प्रतारणा //१०//
श्रवण करती प्रकृति सारी, मेरी इस चीत्कार को /
मेरी पीड़ा ने झंझोरा, प्रकृति के व्यवहार को //११//
हृदय क्रंदित रूप की पीड़ा से कम्पित है धरा /
फट उठा ज्वालामुखी, दमिताग्नि से था जो भरा //१२//
नयन-अश्रु भाँप देखो, फट उठे बादल कहीं /
चक्रवाती लहरें तूफाँ हैं निगलते तट सभी //१३//
टूटते जब ख्वाब मेरे, ग्रह दिशाएँ मोड़ते /
सृजन की धारा पलट, संहार करने दौड़ते //१४//
*******************************************
यत्र नार्यस्तु न पूज्यन्ते तत्र भवति सर्वनाशम!!!!!!!!
प्रिय प्राची जी ये हम सब की पीड़ा है हमें खुद ही इससे निजात पानी है कहते हैं ना यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता ,अब कहो यत्र नार्यस्तु न पूज्यन्ते तत्र भवति सर्वनाशम ,लगता है वे दिन अब दूर नहीं ,आपका हार्दिक आभार
दर्द है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा, लगता है सम्पूर्ण नारी समुदाय अब एक जुट हो कर ही अपने अस्तित्व को सम्हालेगा.
दर्द के अलाव में जल रहे हैं जिस्म
नाच रही हैवानियत मचा हाहाकार
देख खतरे में नारियों का अस्तित्व
सर्व नाश भू मंडल पर ले रहा आकार ....संवेदना को प्रखरता से शब्दों में ढाला है आदरणीया राजेश जी, हार्दिक बधाई
कल ही ऐसे प्रस्तर ह्रदय माता पिता से सामना हुआ, जिन्होंने बेटी जन्मने पर उसका चेहरा नहीं देखा और माँ ने बच्ची को तीन दिन तक दूध भी नहीं पिलाया.
और एक ऐसी माँ से सामना हुआ जो अपनी दूसरी बेटी जन्मने पर बहुत रोई, और अपनी बच्ची को अपनी जेठानी के दो वर्ष के बेटे से बदल लिया.
कैसी विडम्बना है, कैसा आधुनिक समाज है यह, कैसी प्रगतिशीलता है ...
सिर्फ दर्द है, जिसे बयान करने के लिए शब्द भी कम हैं.
नारी को जन्मने ही नहीं दिया जाता, जन ले ले तो भी क्या....उसकी बेबस चीत्कारों से आज मुल्क शर्मसार है..
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online