For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उड़ेल दिए क्या नमक के बोरे ,या चाँदी  की किरचें  बिछाई 

लटके यहाँ- वहां  रुई के गोले  क्या  बादलों   की फटी रजाई 

मति मेरी  देख- देख चकराई |

डाल- डाल पर  जड़े कुदरत ने जैसे धवल नगीने चुन- चुन कर  

लगता कभी- कभी  जैसे धुन रहे  रूई  को अम्बर में धुनकर  

 नग्न खड़े दरख्तों को किसने श्वेत- श्वेत पौशाकें  पहनाई 

 मति मेरी  देख देख चकराई |

सुन्न कम्पित  नीर दूधिया संग लेकर बहती  झेलम की धारा 

तटों पर श्वेत आइस क्रीम सी बिखरी शून्य हुआ तल का पारा   

 जाने किसने झीलों को पारदर्शी  कांच की चुनरी   उढाई   

मति  मेरी  देख- देख चकराई 

सड़कें धुली- धुली  क्षीर से  हिम रजत से पर्वतों  के ढके  बदन  

उज्जवल ,धवल चांदी उबटन  से लिपटे हों  जैसे  उनके   वदन  

किरणों   ने मस्तक जो चूमा उनका   रवि की आँखें चौंधियाई 

मति मेरी देख देख चकराई 

****************************************************************

Views: 800

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 15, 2013 at 6:23pm

हार्दिक आभार प्रिय संदीप आपको रचना पसंद आई 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 15, 2013 at 4:10pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर प्रणाम 
बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने बर्फीली बादियों को बधाई हो आपको

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 15, 2013 at 12:03pm

आदरणीय लक्ष्मण जी हार्दिक आभार आपका आपने मेरी कल्पना और यात्रा के फलस्वरूप उपजे भावों को सराहा 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 15, 2013 at 12:01pm

आदरणीय सौरभ जी हर्षित हूँ की आपने मेरी कश्मीर यात्रा के दौरान उभरे हृदय के उद्द्गारों को सराहा ,जैसा देखा महसूस किया जो कल्पना की थी उससे भी अधिक निकला हार्दिक रूप से आभारी हूँ आपकी प्रतिक्रिया पाकर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 15, 2013 at 11:40am

श्वेत बर्फीला कश्मीर पढ़ कर ऐसा लगा जैसे मै ही कश्मीर की वादियों में भ्रमण कर रहा हूँ । अब आपकी रचना और चित्र से यह फिर सुखद अहसास हुआ है । 

सुन्न कम्पित  नीर दूधिया संग लेकर बहती  झेलम की धारा 

तटों पर श्वेत आइस क्रीम सी बिखरी शून्य हुआ तल का पारा   

सड़कें धुली- धुली  क्षीर से  हिम रजत से पर्वतों  के ढके  बदन  

उज्जवल ,धवल चांदी उबटन  से लिपटे हों  जैसे  उनके  वदन 

मति मेरी देख देख चकराई --------------सुन्दर भावाभिव्यक्ति, और सुन्दर चित्र के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2013 at 11:00am

आदरणीय राजेश कुमारीजी, कश्मीर के इस सुन्दर शब्द-चित्र के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. दृश्य के अनुरूप मनोभावों को शब्द देते जाना उतना सहज नहीं होता जितना प्रतीत होता है. हिम-बगूलों को देख जहाँ नमक के बोरों के खुल जाने या रजाई के फट जाने या फिर धुनकी (धुनकर) द्वारा रुई धुनने आदि की कल्पना करना आपके अंतर में अबतक रमें चिर-शिशु का उत्फुल्ल व आह्लादित होना जताता है, वहीं उज्जवल ,धवल चांदी उबटन से लिपटे हों जैसे उनके वदन // किरणों ने मस्तक जो चूमा उनका रवि की आँखें चौंधियाई.. जैसी पंक्तियाँ अभिभूत करती प्रकृति-सुषमा को निरखती अनुभवी आँखों की संवेदनाएँ साझा करती हैं. 

आप द्वारा हुई कश्मीर यात्रा को हमसब भी जी पाये, इस हेतु आपका धन्यवाद तथा रचना हेतु बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 15, 2013 at 8:33am

अशोक कुमार रक्तेला जी हार्दिक आभार आपका इन वादियों पर लिखे शब्द आपको पसंद आये 

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 14, 2013 at 11:22pm

आदरेया राजेश कुमारी जी सादर, काश्मीर कि बर्फीली वादियों को आप किस तरह मन में बसा लायी हैं आपके गीत में दिख पड़ रहा है. बहुत सुन्दर गीत. सादर बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 14, 2013 at 7:14pm

प्रिय प्राची सच कहा वहां की ख़ूबसूरती मन में गहराई  तक समा  गई है मैंने हर मौसम में कश्मीर को देखा किन्तु जितना सुन्दर सम्मोहक इस वक़्त लगा पहले से कही ज्यादा अद्दभुत ,उसको आज कल अपने ब्लॉग पर सचित्र साझा कर रही हूँ वक़्त मिले तो जरूर पढियेगा दो पोस्ट हो चुकी हैंhttp://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in/ हार्दिक आभार आपका 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 14, 2013 at 7:04pm

बर्फ की चादर ओढ़ी कश्मीर की वादियां और झेलम का सुन्दर शब्द चित्र, 

मन में बसी प्रकृति की इस ख़ूबसूरती को शब्दबद्ध करने के लिए बधाई आदरणीय राजेश जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
14 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
14 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service