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आप सबका हार्दिक आभार । आदरणीय सौरभ जी आपका आदेश पालन करने की कोशिश कर रहा हूं किंतु कभी-कभी आक्रोश इतना घना हो जाता है कि दुरूह बिंब आ जाते हैं उनसे किस प्रकार मुक्ति पाउं, आशा है आगे भी आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा, सादर
आदरणीय राजेश कुमार झा साहब सादर, बहुत सुन्दर गीत भाव लय और शब्द संचय ने मुग्ध किया है. सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें.
भाई राजेशजी, हार्दिक बधाई स्वीकारें. आपकी पंक्तियों में नैसर्गिक प्रवाह होता है. इस हेतु रचनाकार भी कोई विशेष प्रयास संभवतः नहीं करता. एक विन्दु पर यह कथ्य प्रस्तुतिकरण के लिहाज से रचनाकार का सबल पक्ष है, तो आगे भी इसका अन्यतम निर्वहन बना रहे, इसके प्रति मेरे जैसा पाठक आश्वस्ति भी चाहता है. साथ ही साथ, यह भी उचित होगा कि ऐसे अबाध संप्रेषण को अभिनव बिम्ब भी उपलब्ध कराये जायें. रचना की कुछ पंक्तियों में ये परिलक्षित भी हैं. किन्तु, उनकी अदम्य उपस्थिति रचना की कालजयीता के लिए धनात्मक संपुट का कारण होगी.
इस प्रयास के लिए बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें और ऐसे ही रचनात्मक बने रहें.
सादर
बहुत बहुत सुन्दर गीत, निःशब्द हूँ ...
हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ. राजेश झा जी
भाव प्रधान रचना, सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई श्री राजेश कुमार झा जी
श्रद्धेय विजय जी, बहुत आभार, कृपया स्नेह बनाए रखें
आदरणीय राजेश जी,
अति सुन्दर!
मन बंजारा फिर सब हारा
डूबा फिर से कूल किनारा
काहे फिर ना दरस दिखाते
निष्ठुर क्यों ना जिया जुड़ाते
मायाजल हदमद मन सीझै
युगरूप बहुत मनुहार हुई
बधाई।
विजय निकोर
आदरणीय गंभीर सिंह जी, संदीप जी एवं सुमन जी रचना का संज्ञान लेने के लिए हार्दिक आभार
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