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रे मन करना आज सृजन वो / डॉ. प्राची

रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l

निश्छल प्रण से, शून्य स्मरण से
मूरत गढ़ना मृदु सिंचन से,
भाव महक हो चन्दन चन्दन
जो सोया चैतन्य जगा दे l

रे मन करना आज सृजन वो

भव सागर जो पार करा दे l

प्रबल अवनि हो, चकमक मणि हो
बधिर श्रव्य वह निर्मल ध्वनि हो,
शब्द कंप का निहित अर्थ हर
मन वीणा के तार गुंजा दे l

रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l

हृदय नभश्वर मापे अम्बर
अमिय पिए, कर मंथित सागर,
अमर सुधा रस छलक छलक कर
तृप्त करे, मन-प्राण भिगा दे l

रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l

निज सम्मोहन द्विजता बंधन
विलय करे हो ऐसा वंदन,
सत्य कटु और मधुर कल्पना
विलग! सेतु बन, मिलन करा दे l

रे मन करना आज सृजन वो
भव सागर जो पार करा दे l

 
*सस्वर गायन गणेश जी "बागी"

इस गीत का ऑडियो फाइल (MP3) यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करें ..

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Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 10, 2013 at 4:29pm

आदरणीया प्राची जी 

सादर 

ऐसे ही  सर्जन की आवश्यकता है.

और ऐसा होगा भी. 

बधाई 

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 8, 2013 at 8:11pm

प्रबल अवनि हो, चकमक मणि हो

बघिर श्रव्य वह निर्मल ध्वनि हो,

शब्द कंप का निहित अर्थ हर

मन वीणा के तार गुंजा दे l

 

रे मन करना आज सृजन वो

जो भव सागर पार करा दे l

बहुत ही सुन्दर प्रार्थना शब्द शब्द दिल में उतर रहा है. हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरेया डॉ. प्राची जी सादर.

Comment by vijay nikore on January 8, 2013 at 6:53pm

सुन्दर शब्द-चयन, सुन्दर लय...

प्रेरणादायक कविता अच्छी लिखी है।

बधाई।

विजय निकोर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 8, 2013 at 4:52pm

निश्छल प्रण से, शून्य स्मरण से

मूरत गणना मृदु सिंचन से,

भाव महक हो चन्दन चन्दन

जो सोया चैतन्य जगा दे l

रे मन करना आज सृजन वो

जो भव सागर पार करा दे l ------बहुत सुन्दर रचना प्राण(संकल्प) भी निश्छल भाव लिए हो तभी चन्दन चन्दन महकेगा और चेतन्य जगा देगा तभी भाव सागर से पार करने में मन अपना समर्थ हो सकेगा । सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई डॉ प्राची सिंह जी 

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on January 8, 2013 at 8:37am

सुन्दर शब्दों के सुन्दर प्रयोग से अति सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आदरणीय प्राची दी, बधाई स्वीकारें !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 7, 2013 at 3:09pm

आभार आ. श्याम नारायण वर्मा जी, पर आपकी टिप्पणी मैं देख नहीं पा रही हूँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 7, 2013 at 3:06pm

रचना के अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सुमन मिश्रा जी.

Comment by Shyam Narain Verma on January 7, 2013 at 2:36pm

Comment by SUMAN MISHRA on January 7, 2013 at 12:52pm

मन का पूर्ण दर्शन ,,,बहुत सुंदर शब्दावली ,,,,

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