आदिकाल से नारी स्वयं में है पहचान,
क्यों कर अबला बनी है सर्वशक्तिमान,
दुर्गा अहिल्या शबरी सावित्री रूप भाता,
दुष्ट दलन श्रृष्टि कर्ता दुःख भंजन माता,
बहना बेटी भार्या बन परिवार में आती,
उड़ेल स्नेह कई रूपों में संस्कार जगाती,
धरती सा सीना इसका वात्सल्य की मूर्ति,
त्याग समर्पण स्नेह से करती इच्छा पूर्ति,
नाहक पुरूष पुरुषार्थ दिखाते लज्जा न आती,
न कोई और रिश्ता हो ये माता तो कहलाती|
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
९-१-२०१३
Comment
धन्यवाद
आदरणीय अशोक जी
सादर नमस्कार
सुन्दर रचना आदरणीय प्रदीप जी, सही है नारी को पूरा सम्मान मिलना चाहिए.सादर.
आदरणीया शुभ्रा जी
सादर
प्रोत्साहन हेतु आभार
आदरणीया अन्वेषा जी
सादर
प्रयास किया है.
शायद कुछ बदलाव आये
आभार प्रोत्साहन हेतु
'नाहक पुरूष पुरुषार्थ दिखाते लज्जा न आती',प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी सुन्दर और सटीक रचना
wartman me jo ghatit hua...ya jo hota aa raha hai...durbhagya ki baat hai....asha hai mansikta me kabhi badlav aaye...achchha prayas
धन्यवाद आदरणीय अनन्त जी
रचना आपको भाई.
आदरणीय कुशवाहा सर नारियों में शक्ति, जोश और उर्जा को बढाती, नारी को समर्पित सुन्दर रचना हार्दिक बधाई
आदरणीय बागी जी,
सादर
प्रोत्साहन हेतु आभार
//बहना बेटी भार्या बन परिवार में आती,
उड़ेल स्नेह कई रूपों में संस्कार जगाती,//
बिलकुल सटीक बयानी, सच्ची सच्ची बात, अच्छी अभिव्यक्ति आदरणीय कुशवाहा जी , बधाई हो |
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