मूँछ
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मूँछ की भी अजब कहानी
खिले आनन् दिखे जवानी
कद लम्बा और चौड़ा सीना
पहने उस पर कुरता झीना
चलता राह रोबीली चाल
काला टीका औ उन्नत भाल
कभी तलवार कभी मक्खी कट
छोटी बड़ी कभी सफा चट
बगैर मूँछ लगता चेहरा खुश्क
देख मूँछ खिल उठे मन कमल पुष्प
नन्हे हाथों पकड़ जब नाती खींचे
होए दर्द नाना हँसे तब दांत भींचे
मुस्कराता बालक बहु मंद मंद
जीवन का सच्चा मिलता आनंद
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
२४-१२-२०१२
Comment
आदरणीय अशोक जी
सादर
मूँछ महिमा पसंद आयी,
आभार
आदरणीया प्राची जी
सादर
आपको पसंद आयीआभार
धन्यवाद आदरणीय अजय जी सादर
kushwaha ji munch ki mahima ka sunger chitran badhai
नन्हे हाथों पकड़ जब नाती खींचे
होए दर्द नाना हँसे तब दांत भींचे
मुस्कराता बालक बहु मंद मंद
जीवन का सच्चा मिलता आनंद ..............वाह बहुत सुन्दर शब्द , बहुत सुन्दर प्यारे भाव.
हार्दिक बधाई.
आदरणीय प्रदीप जी सादर, सुन्दर रचना मुछ महिमा पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.
जीवन का सच्चा मिलता आनंद
बढ़ी अनमोल थी मूछें आपकी सौगंध
कहीं कट ना जाए रहती थी ये चिंता,
भर लाते सारा माल रखकर बाल चंद,
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