पुकार
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साहित्यिक तकनिकी पर यह रचना भले ही बेकार हो पर समय की मांग पर मुख्य प्रष्ट पर स्थान मिलता तो अच्छा होता
आदरणीय अशोक जी,
सादर
हमेशा टूटी हैं और अब भी टूटेंगी.
आभार
आदरणीय भ्रमर जी, सादर
ऐसा ही होगा. देर या सवेर
आभार
आदरणीया राजेश कुमारी जी,
सादर
आपने यदि मुड के देखा होता तो मैं ठीक आपके पीछे ही था और रहूँगा.
आभार
आदरणीय बाग़ी जी,
सादर
आपने द्रष्टि डाली .
आभार
हिम्मत बढ़ी
स्नेही अनंंत जी
आभार.
आदरणीय प्रदीप जी सादर, साहित्यकारों कि तलवारें तो खूब चल रही हैं किन्तु यह विआयपी सुरक्षा कि दीवारों को नहीं तोड़ पा रही है
सोने वाले तुम कभी न थे
जब जब देश में समाज में इस तरह का प्रतिकूल वातावरण बना तब तब लेखकों की कलम की धार चली इतिहास गवाह है उसी जोश और भावनाओं का आह्वान करती एक औज पूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई इस पुकार में हमें शामिल समझिये
आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, साहित्यकारों को उनका कर्त्तव्य स्मरण कराती हुई एक अच्छी रचना , बधाई हो |
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